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कर्म : जितने अच्छे करेंगे उतना आगे बढ़ेंगे ! The Power Of Karma ☸

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 दोस्तो, एक बार की बात है एक राजा के मन में एक सवाल आया कि जब ईश्वर सब कुछ अच्छा और बहुत अच्छा बना सकता था तो उसने दुनिया में इतने दुख दर्द क्यों बना दिए? क्या दुनिया में होने वाले सभी बुरे कर्मों में ईश्वर को मजा आता है? क्योंकि जो कुछ भी हो सकता है, वह सब उसके नियंत्रण में है। वह चाहे तो दुनिया को बहुत खूबसूरत बना सकता है। कोई बुराई ना हो, किसी को कोई दुख ना हो, कोई दर्द ना हो। फिर ईश्वर ने ऐसी सृष्टि की रचना क्यों नहीं की? राजा ने दरबार में सभी को अपने सवाल से अवगत कराया और कहा जो कोई भी मेरे सवाल का सही और सटीक जवाब दे देगा उसे मैं मुंहमांगी रकम इनाम में दूंगा। यह सुनकर उस राजसभा के कुछ विद्वान लोग खड़े हुए और कहने लगे, हे राजन! इस प्रश्न का जवाब देने में कोई बड़ी बात नहीं है। इसका जवाब तो हम भी दे सकते हैं। ईश्वर ने जो सृष्टि बनाई है, अच्छी ही बनाई है। सुख से भरी हुई ही बनाई है। पर हमारे मन के कारण इसमें दुख उत्पन्न होता है। इसमें दोष ईश्वर का नहीं है, हमारे मन का है। वही हमें भटका देता है। राजा ने कहा, पर क्या आप हमें यह बतायेंगे कि हमारा मन सही कैसे रहे? वह कभी न भटके। वह हमेशा सत्य की ओर चले। ऐसे मन का निर्माण ईश्वर भी तो कर सकता है। फिर उसने हमारे अंदर ऐसे मन का निर्माण क्यों नहीं किया? राजसभा के दूसरे विद्वान ने कहा महाराज ! जैसे ईश्वर होता है, वैसे ही शैतान भी होता है। ईश्वर की बनाई हुई शरीर में वह शैतान प्रवेश कर जाता है।


फिर वह शैतान इंसान के दिमाग को प्रभावित कर देता है। अर्थात वह शैतान इंसान के दिमाग में गंदे गंदे विचार डाल देता है, उससे बुरे कर्म करवा देता है। इसलिए जीवन में दुख उत्पन्न होने लगते हैं। लोग दुखी होने लगते हैं। इसमें दोष ईश्वर का नहीं है, दोस्त उस शैतान का है। राजा ने कहा, तो क्या शैतान ईश्वर से ज्यादा शक्तिशाली है? विद्वानों ने कहा, नहीं, इस सृष्टि में सबसे शक्तिशाली ईश्वर ही है। राजा ने कहा तो फिर ईश्वर शैतान को खत्म कर अपनी बनाई हुई इंसानी रूपी शरीर से हमारे अंदर मौजूद दोषों को क्यों नहीं मिटा देता है? और अगर वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है तो इसका मतलब शैतान ज्यादा ताकतवर है। वह ईश्वर से ज्यादा शक्तिशाली है। तो फिर हमें शैतान की शरण में जाना चाहिए। राजा की बात सुनकर सभी शांत हो गए। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई राजा की बात का सही उत्तर दे


सके। इसके बाद राजा ने घोषणा करवा दी कि जो कोई भी अपने उत्तर से मुझे संतुष्ट कर देगा, उसकी हर एक इच्छा पूरी की जाएगी। इसके बाद राजा के पास दूर दूर से देश विदेश के विद्वान आने लगे। सबने अपने अपने उत्तर रखे पर कोई भी अपने उत्तर से राजा को संतुष्टनहीं कर पाया। बहुत दिन गुजर गए। आखिरकार राजा ने मान ही लिया कि इस दुनिया में कोई नहीं है जो उसके प्रश्नों का सही जवाब दे सके। इसी पर चर्चा करने के लिए एक दिन राजसभा बुलाई गई।


राजा ने कहा, हमने 1 से 1 विद्वानों से चर्चा की पर कोई भी हमारे सवाल का ठीक से जवाब नहीं दे पाया। सब कही सुनी बातों को ही दोहरा रहे थे। क्या हम यह मान लें कि अभी इसका जवाब हमें नहीं मिल सकता है? तभी राजा का रसोइया राज दरबार में उपस्थित हुआ और उसने कहा, महाराज, आपके लिए एक ऐसी सब्जी मैंने बनाई है जिसे खाने के बाद आपको आपके सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा और सब्जी इतनी बढ़िया मैं बनाया हूं कि आज तक ऐसा स्वाद किसी ने भी नहीं लिया है। राजा ने कहा तुम्हारी बातों से लगता है कि सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट होगी। हमारे सामने इसे जल्दी पेश किया जाए। रसोइये ने कहा, महाराज, सब्जी तो यहां नहीं आ सकती। आपको सब्जी तक जाना पड़ेगा, नहीं तो सब्जी का स्वाद खराब हो जायेगा। राजा ने कहा अच्छा, अगर ऐसा है तो हम ही तुम्हारे साथ चलते हैं। राजा के साथ सभी दरबारी भी साथ चलने लगे। रसोइया राजा को एक कद्दू के पौधे के पास ले गया। उस पौधे पर एक कद्दू लगा हुआ था। रसोइये ने कहा, महाराज, यही है सब्जी खा लीजिए। यह सुनते ही राजा को क्रोध आ गया और उसने कहा, क्या तुम हमारे साथ मजाक कर रहे हो? 

यह सब्जी है, लेकिन तुमने तो इसे बनाया भी नहीं है। हम इस कच्चे कद्दू को कैसे खाएंगे? रसोइये ने कहा, महाराज, मुझे क्षमा कीजिएगा। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। पर आप भी तो ऐसा ही कह रहे हैं कि ईश्वर ने सृष्टि बिना दुखों के क्यों नहीं बनाई? राजा ने कहा, अपनी बात स्पष्ट करो। रसोइये ने कहा कि कद्दू का पौधा एक बीज से निकलता है। अगर बीज को दुख नहीं होगा, वह अपना सीना नहीं चलेगा अर्थात उसकी ऊपरी खोल नहीं फूटेगी तो यह कद्दू का पौधा उस बीज से नहीं निकल पाएगा। और जब यह पौधा उस कद्दू के बीज से नहीं निकल पाएगा तो आप कद्दू को कैसे खाएंगे? क्योंकि जब पौधा ही नहीं रहेगा तो इसमें कद्दू कैसे लगेंगे? रसोइये ने कहा, महाराज, जब मैं इस कद्दू को इस पौधे से तोड़ता हूं तो इस पौधे को अर्थात इसकी टहनियों को बहुत दर्द होता है। राजा ने कहा कि तुम कहना क्या चाहते हो? यह अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ है। रसोइये ने कहा, मैं आपको अपनी बात स्पष्ट कर लूंगा पर इसके लिए आपको दरबार में जाना होगा। मैं वहीं इस कद्दू की सब्जी बनाकर आपके लिए लेकर आता हूं। राजा ने कहा, ठीक है, जैसा तुम कहते हो, मैं वैसा ही करता हूं। हम दरबार में जा रहे हैं। तुम जल्दी इस कद्दू की सब्जी बनाकर ले आओ। राजा अपने दरबारियों के साथ दरबार में बैठ गया। कुछ देर बाद रसोइया सब्जी को एक बरतन में ढककर उस दरबार में ले कर आता है। रसोइये ने कहा, महराज, इससे पहले कि आप यह सब्जी खायें, मुझे आप से अभयदान चाहिए। मेरी पूरी बात सुने बिना मुझे मृत्युदंड नहीं मिलना चाहिए। राजा ने कहा, डरो


नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। तुम्हें अपनी पूरी बात कहने का मौका मिलेगा। रसोइये ने सब्जी राजा के सामने रख दी। राजा ने सब्जी को देखा तो चौंक गया और कहा कि यह क्या मजाक कर रहे हो? क्या तुम हमारी हंसी उड़ाना चाहते हो? इसमें तो कच्ची कद्दू ही रखी है तुमने उसे पकाया भी नहीं है। रसोइये ने कहा, महाराज, इस कद्दू को उस पौधे से तोड़कर पहले ही मैंने उस टहनी रूपी कोमल पौधे को और उस कद्दू को बहुत ही दुख दर्द दिया है। अब इस कद्दू को काट कर इसे और दर्द देना क्या उचित है? इसके बाद इसे तेल में तला जायेगा। फिर इसमें भयानक भयानक मसाले डाले जाएंगे। और महाराज। तब जाकर आप इसका स्वाद चख पाएंगे और आप कहेंगे कि वाह क्या सब्जी बनाई है। राजा ने कहा तुमने अभी भी अपनी बात स्पष्ट नहीं की है। अपनी पूरी बात स्पष्ट करो। तुम कहना क्या चाहते हो? रसोइये ने कहा, महाराज, अगर सृष्टि का रचयिता सबको सुख ही दे दे तो सभी बीज बीज ही रह जायेंगे। वह अपना बलिदान क्यों देंगे?

किसी पेड़ को बनने के लिए, किसी पौधे को उगने के लिए, किसी फल को पाने के लिए बीज को तो नष्ट होना ही पड़ेगा। वह नष्ट होते हैं व अपना बलिदान देते हैं। तब जाकर सृष्टि आगे बढ़ती है।


महाराज! सृष्टि के निर्माण में तीन चीजों का योगदान है। पहला विनाश है, दूसरा रचना है, तीसरा पालन करना है। इसके बाद फिर से विनाश आता है और यह चक्र चलता रहता है। इसी से सृष्टि आगे बढ़ती है। बीज के विनाश से पौधे का जन्म होता है। पौधा अपनी पूरी उम्र तक रचना धारण करता है और उसका पालन करता हुआ वह बड़ा होता है। फिर उसमें फल लगते हैं और उस फल में बीज बनते हैं और फिर वह विनाश को प्राप्त होता है। पूरी सृष्टि तीन हिस्सों में बंटी हुई है और उनका एक दूसरे के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं है। जैसे दिन और रात और उनके मध्य संध्या का समय। जैसे स्त्री और पुरुष और उनके बीच अर्धनारीश्वर यानी किन्नर जैसे सुख और दुख और उनके बीच मोक्ष। राजा ने कहा कि बहुत गहरी बात बोल रहे हो। लगता है कि तुम्हें बड़ा ज्ञान है। यह बताओ यह मनुष्य बुरे कर्म क्यों करता है?



क्या उससे या ईश्वर करवाता है या कोई शैतान करता है? रसोइये ने कहा कि सृष्टि के रचयिता ने कभी किसी को नहीं कहा कि वह बुरे कर्म करे, बल्कि उसने हमें यह बुद्धि दी है जो हमें बताती है कि क्या सही और क्या गलत है। सृष्टि में मौजूद तीन चीजों में से हम किसी एक चीज का चुनाव कर सकते हैं। चुनने की आजादी हमें दी गई है और अपने अपने कर्मों के हिसाब से सबको दुखदर्द मिलता है। हमने शैतान का निर्माण इसलिए किया है ताकि हम सबकुछ उस पर थोप सकें कि वह शैतानी हमसे करवा रहा है बल्कि शैतान नहीं। वह हमारा मन ही हमसे करवा रहा है क्योंकि उसका निर्माण हमने खुद ही किया है और इसी कारण शैतान ताकतवर बन जाता है। राजा ने कहा। तो क्या ईश्वर हमारे सुख और दुख के लिए उत्तरदायी नहीं है? अपनी बात को सही तरह से स्पष्ट करो। रसोइये ने कहा, महाराज, ईश्वर केवल निर्माण करता है, विनाश करता है, पालनकर्ता है। उसकी सृष्टि से आप क्या उठाते हैं, यह आप ही निर्णय करते हैं। इसमें वह कुछ नहीं करता। राजा ने कहा, हम तुम्हारी बात से सहमत नहीं हैं। इसे साबित करो। रसोइये ने कहा कि महाराज, आज मैं आपके लिए इस कद्दू की सब्जी बनाकर लाना


चाहता हूं। उसके बाद ही मैं अपनी बात स्पष्ट कर सकूंगा। राजा ने इजाजत दे दी और रसोइया कद्दू की सब्जी बनाकर दरबार में ले आया। राजा ने उस कद्दू की सब्जी को खाया और रसोइये पर चिल्लाया, यह क्या सब्जी बनाई है?

कद्दू को उबालकर ही ले आए हो। इसमें न मसाले पड़े हैं, न नमक पड़ा है और न ही मिर्च। क्या इस तरह का खाना खाएंगे? रसोइये ने कहा, महाराज, आपको यह सब्जी पसंद नहीं है। यह आपका निर्णय है। इसमें ईश्वर कुछ नहीं कर रहा। जबकि यह बात सत्य है कि यही सब्जी आपकी सेहत के लिए उचित है। मसालों के साथ जिस सब्जी का निर्माण किया जाएगा, वह आपकी सेहत के लिए सही नहीं है। अब आप निर्णय ले सकते हैं कि आपको कौन सी सब्जी खानी है। इसमें ईश्वर कुछ नहीं कर रहा है। वह बस इतना ही करता है कि आपको एक कद्दू दे सकता है। वह आपको ऐसी चीजें दे सकता है जिससे आप तेल और मसाले निकाल सकें। फिर आप उसके साथ क्या करते हैं, यह आप का निर्णय है। राजा ने कहा, बहुत खूब। तुमने बहुत अच्छी तरह से समझा दिया कि अपने अच्छे बुरे के लिए हम ही जिम्मेदार होते हैं। हमारे कर्म ही हमें वापस लौटकर मिलते हैं। कर्म करते समय या कर्म के बारे में


सोचते समय हमें पता होता है कि अच्छा है या बुरा। जितना प्रभाव बुरे कर्मों का पड़ता है, इससे ज्यादा बुरे कर्म सोचने का पड़ता है। फिर हमारे साथ दुर्घटनाएं हो जाती हैं, दुख उत्पन्न हो जाता है और हम रोते हैं कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। इसके लिए जिम्मेदार हम ही होते हैं। रसोइये ने कहा,


महाराज, जब कोई इंसान कोई बुरा कार्य करता है तो बुरा कार्य करने से पहले उसके दिमाग में बुरे


कार्य करने का विचार आता है। तब जाकर वह उस काम को अंजाम देता है। और सबसे खास बात तो


यह है कि हम जो भी काम करने जा रहे हैं, यह हमें पता होता है कि यह काम बुरा है क्योंकि ईश्वर ने


इंसान को दिमाग दिया है, उसे सोचने समझने की शक्ति दी है और जानवरों से अलग उसे बनाया है।


उसका दिमाग जानवरों से तेज चलता है। इसलिए अगर कोई जान बूझकर बुरे कार्य करता है, बुरे कर्म


करता है तो वह उसका भागीदार बन जाता है। जानवरों को तो यह पता नहीं होता है कि वह जो कार्य


कर रहे हैं, वह सही है या गलत। उसे तो अपना पेट भरना रहता है। वह अपने पेट भरने के लिए कुछ


भी करता रहता है। लेकिन इंसान तो समझदार है। उसे तो अच्छे और बुरे का ज्ञान है। लेकिन अगर वह


जानबूझकर गलती करता है तो उसके बुरे कर्म उसको कभी नहीं माफ करेंगे। उसको एक न एक दिन


अपने बुरे कर्मों का दंड जरूर मिलेगा। महाराज अभी भी इस दरबार में तमाम लोग हैं जो हर दिन कुछ


न कुछ बुरा कार्य करते रहते हैं। लोगों को सताने का काम करते रहते हैं। आपने जो उन्हें पावर दी है


वह उसका गलत फायदा उठा लेते हैं। लेकिन वहीं पर कुछ ऐसे लोग हैं जो जनता की सेवा के लिए


हमेशा तत्पर रहते हैं। वह अपना काम सही तरीके से करते रहते हैं अर्थात अपने जीवन में अच्छे कार्य


करके अच्छे कर्म कमाते रहते हैं। राजा रसोइये की बात से पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है। वह सभी से


कहता है कि ज्ञान हमें कहीं से मिले उसे ले लेना चाहिए। जो बड़े बड़े विद्वान नहीं, हमारे प्रश्नों का जवाब


दे पाए। आज रसोइये हमारे प्रश्नों का जवाब दे दिया। इसलिए कोई भी इंसान छोटा या बड़ा नहीं होता


है। इंसान अपनी सोच से बड़ा और छोटा होता है। सभी दरबारी शर्म से अपना सर झुका लेते हैं। राजा


ने प्रसन्न होकर उस रसोइये से कहा कि मांग लो तुम्हें जो मांगना है, तुम मांग सकते हो। रसोइये ने कहा


कि महाराज हमें कुछ नहीं चाहिए, बस हमें आजादी चाहिए ताकि हम अपने दिमाग में अच्छे अच्छे


विचार को जन्म दे सकें और आपके लिए भी अपने हिसाब से अच्छे से खाने बना सकें ताकि आपकी


सेहत अच्छी रहे। राजा उस रसोइये की बात से पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है। वह उसकी सभी इच्छा



सेहत अच्छी रहे। राजा उस रसोइये की बात से पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है। वह उसकी सभी इच्छा को पूरी कर देता है और उसे ढेर सारा इनाम उपहार स्वरूप भेंट करता है। दोस्तो, जब हम अपने जीवन में अच्छे कर्म अर्जित कर लेते हैं तो वही अच्छे कर्म हमारे बुरे कर्मों को काट देते हैं और अच्छे या बुरे कर्म हमारे दिमाग में उत्पन्न होते हैं। इसलिए हमें अपने मन को हमेशा अच्छे विचारों से भरना चाहिए। जब अपने मन में अच्छे अच्छे विचारों को भरेंगे तभी जाकर हम अच्छा अच्छा कार्य कर पाएंगे। दोस्तों मुझे उम्मीद है इस वीडियो से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा और अगर आप नए हैं तो हमसे जुड़ने के लिए इस चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलिएगा। मिलते हैं अगले वीडियो में कुछ


नए विचारों के साथ तब तक के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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