हमने काफी सारी कहानियां सुनी हैं। हमने काफी सारी बातें सुनी हैं, लेकिन उसके बाद भी हम ध्यान नहीं लगा पाते हैं। हम किसी काम में मन नहीं लगा पाते। आखिर ऐसा क्यों है और ऐसी क्या वजह है जिस कारण जब भी हम कोई कार्य करना शुरू करते हैं तो हमारा मन भटकने लगता है। हमारे मन में तरह तरह के विचार चलने लगते हैं और हम उस कार्य पर ध्यान ही नहीं लगा पाते। तो अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो आज की कहानी यह आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाली है। तो इस कहानी को अंत तक जरूर सुनिएगा। इस कहानी में हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताने वाले हैं वह बहुत ही विद्वान और बहुत ही ज्ञानी थे। लोग उनके पास अपने समाधान के लिए बहुत दूर दूर से आया करते थे और उनके आश्रम में उनके कई शिष्य भी थे और वह उनके साथ रहते थे। एक दिन की बात है वह अपने आश्रम में टहल रहे थे कि तभी उन्होंने देखा कि उनका एक शिष्य संस्कृत के कुछ लोगों को एक पन्ने से दूसरे पन्ने पर उतारने का प्रयास कर रहा था, लेकिन बार बार गलती होने के कारण उसे वह सारा काम दोबारा शुरू करना पड़ रहा था। कई बार प्रयास करने के बाद आखिरकार वह थक गया और हार मान ली। तभी उसकी नजर उन गुरुवर पर पड़ी। जब उस शिष्य ने उन गुरु को जिसके माध्यम से आप किसी भी कार्य को मन लगाकर कर सकते हैं और आपका ध्यान भी प्रति सेकंड गहरा होता जाएगा। दोस्तों एक समय की बात है एक नगर में एक बहुत ही प्रसिद्ध गुरु रहा करते थे। देखा तो उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या बताते हुए वह उन गुरुवर से कहता है कि हे गुरुवर ! में करीब दो घंटे से नए पन्ने पर उतारने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन बार बार न जाने क्यों मुझसे गलती हो रही है। न जाने क्यों बार बार मेरा मन भटकता जा रहा है। मैं हर बार अपने मन को साधने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन बार बार मुझसे कोई न कोई गलती हो ही जा रही है और इसी कारण मुझे बार बार यह काम एक नए सिरे से शुरू करना पड़ रहा है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसका जवाब देते हुए वह गुरुवर अपने उस शिष्य से कहते हैं, ऐसा केवल ध्यान की कमी के कारण होता है, क्योंकि एक साधारण इंसान अपने मस्तिष्क की ऊर्जा को यूं ही व्यर्थ कर देता है। इसी कारण उसका मन किसी भी कार्य में नहीं लग पाता और यही वजह है कि उनकी बार बार गलतियां होती रहती हैं और वह चाहकर भी उन गलतियों को सुधार नहीं पाते और वहीं पर एक ध्यान लगाने वाला मन इन कार्यों को बड़ी सरलता और सहजता से कर लेता है और इसके पीछे भी कई कारण हैं। तभी वह शिष्य उन गुरुवर से कहता है कि कौन से कारण है गुरुवर। तभी वह गुरुवर अपने शिष्य से पहला कारण बताते हुए कहते हैं कि आप लिखते वक्त ज़रूर
किसी और घटना के बारे में सोच रहे हों। इस पर वह शिष्य हां में सिर हिलाते हुए कहता है, जी मुनिवर, आपने बिल्कुल सही कहा। आज सभी शिष्यों की छुट्टी है और सभी अपने अपने कामों से बाहर गए हैं, लेकिन मुझे यह काम मिला है और मुझे इस काम को पूरा करना है। शायद यही कारण है कि मैं ठीक से मन नहीं लगा पा रहा हूं। तभी वह युवा शिष्य उन गुरुवर से कहता है कि हे गुरुवर! यदि हमारा मन कहीं न लगे और हम किसी भी कार्य को सही ढंग से न कर पाएं तो ऐसी स्थिति में हम अपने ध्यान को कैसे बढ़ा सकते हैं? इसका जवाब देते हुए वह गुरुवर अपने उस युवा शिष्य से कहते हैं कि में तुम्हें कुछ ऐसे तरीके बताने जा रहा हूं जिन्हें यदि तुम ध्यान में रखेंगे तो तुम अवश्य ही अपने ध्यान शक्ति को बढ़ावा होगे और तुम किसी भी कार्य में गहराई से मन लगा पाओगे। आगे गुरुवर सबसे पहला ध्यान को कैसे बढ़ा सकते हैं? इसका जवाब देते हुए वह गुरुवर अपने उस युवा शिष्य से कहते हैं कि में तुम्हें कुछ ऐसे तरीके बताने जा रहा हूं जिन्हें यदि तुम ध्यान में रखेंगे तो तुम अवश्य ही अपने ध्यान तरीका बताते हुए कहते हैं कि जब भी तुम्हारा मन किसी कार्य में ना लगे तो सबसे पहले सांस लो और गहरी सांस छोड़ो। ऐसा करीब पाँच बार करो और अपने मन को काम और अन्य चीजों से हटाकर केवल सांस पर ले आओ। आगे गुरुवर अगला तरीका बताते हुए कहते हैं कि जब भी तुम कोई कार्य कर रहे हो तो अपनी सारी इंद्रियों को एक काम से जोड़ने का प्रयास करो। जैसे कि अब भी तुम लिखने का प्रयास कर रहे थे। तो लिखते वक्त जब तुम कलम अपने हाथों में पकड़ते हो तो उंगलियों के बीच में उस कलम का स्पर्श महसूस करो। अपनी आंखों से शब्दों को बनते हुए देखो और लिखते समय कलम और कागज के घर्षण से जो आवाज उत्पन्न हो रही है, उस पर ध्यान केंद्रित करो। उसे ध्यान से सुनो। या फिर तुम लिखते समय शब्दों का उच्चारण करके अपने मन के भीतर गूँजता हुआ महसूस करो और अब अपनी नाक से उस स्याही की गंध को महसूस करो। इससे तुम्हारी सारी इंद्रियां एकजुट हो जाएंगी और एक ही काम से जुड़ जाएंगी। आगे गुरुवर कहते हैं कि अपने काम के साथ एकजुट हो जाओ, उससे जुट जाओ और अपनी इंद्रियों को अपने काम के साथ जोड़ने के बाद तुम्हारा ध्यान अत्यधिक गहरा हो जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि तुम काम के साथ एक हो चुके हो। यानी कि तुम काम में पूरी तरह से खो चुके हो। और जब तुम इस प्रकार कोई भी कार्य करोगे तो तुम्हें समय का पता भी नहीं चलेगा और तुम्हारे कार्यों में कोई भी गलती नहीं होगी। लेकिन मेरी एक बात और याद रखना, यदि बीच बीच में तुम्हारा मन भटकने लगे, तुम्हारे मन में तरह तरह के विचार उठने लगे और तुम्हारा मन यहां वहां भागने लगे तो डरना मत। तुम दोबारा से निश्चय करना और दोबारा से ध्यान लगाने का प्रयास करना। देखते ही देखते तुम इस अभ्यास में निपुण हो जाओगे और तुम्हारा ध्यान अत्यधिक गहरा होता चला जाएगा।
उस शिष्य ने उन गुरुवर की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं और उसके बाद उसने ऐसा ही किया और देखते ही देखते वह अपने कार्य में इतना खो गया कि जहां जहां वह गलतियां कर रहा था, वहां पर अब उसकी कोई भी गलतियां नहीं हो रही थी।और तो और उसने अपना सारा कार्य एक ही बार में पूरा कर लिया और ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि हमारा सारा ध्यान। इंद्रियों में बंटा होता है और इसलिए हमें अपनी इंद्रियों को एक कार्य पर लगाना बहुत आवश्यक है, क्योंकि यदि हमारा ध्यान इन इंद्रियों में बंटा रहेगा तो हमारा मन भटकता रहेगा। जहां जहां भी हमारी इंद्रियां भागी, वहां वहां हमारा मन भी भागेगा, लेकिन वहीं पर यदि आपने अपनी सारी इंद्रियों को केवल एक ही कार्य पर लगा दिया तो आपका मन भटकना बंद हो जाएगा और इस समय आप बहुत ही अत्यधिक गहरे ध्यान में पहुंच जाएंगे। किंतु साधारण मन इसे ज्यादा देर तक साध नहीं सकता। लेकिन इस प्रकार बार बार और निरंतर अभ्यास करने से मन ध्यान को साधना सीख जाता है और आपको ध्यान अत्यधिक गहरा होने लगता है और आपको उस कार्य में रुचि भी आने लगती है और जब भी आप उस कार्य में पूरी तरह से खो जाते हैं तो आपको समय का भी पता नहीं लगता और आपका कार्य भी अच्छी तरह से और सफलता पूर्वक हो जाता है। वह गुरु अपने शिष्य को यह सारी बातें बताकर ध्यान में लीन हो गए। लेकिन तभी वहां पर एक युवक आया और उस युवक ने उन गुरुवर को प्रणाम किया। तभी उन गुरुवर ने अपनी आंखें खोली और इस पर वह युवक कहता है कि हे गुरुवर मैं आपके पास बहुत दूर से आया हूं। मैंने आपके बारे में तरह तरह की बातें सुनी हैं। मैंने सुना है कि आप सभी की समस्याओं का समाधान करते हैं। मेरी भी एक समस्या है। कृपया करके मेरा मार्गदर्शन करें। इस पर वह गुरुवर उस युवक से कहते हैं कि बोलो आखिर तुम्हारी क्या समस्या है? वह युवक अपनी समस्या बताते हुए उन गुरु से कहता है कि हे गुरुवर, मैं बहुत लंबे समय से तैयारी कर रहा हूं। मैंने कई तरह की सरकारी परीक्षाएं भी दी हैं, लेकिन मैं किसी में भी उत्तीर्ण नहीं हो पाया। मुझे यह पता ही नहीं चल पा रहा कि आखिर मुझसे गलती कहां हो रही है। आखिर मुझमें क्या कमी है? उस युवक का यह प्रश्न सुनकर वह गुरुवर मुस्कुराने लगे और उस युवक से कहते हैं कि क्या तुम सच में अपनी परीक्षा में सफल होना चाहते हो? इसका जवाब देते हुए वह युवक कहता है कि हां गुरुवर मैं अपनी परीक्षा में सफल होना चाहता हूं इसलिए तो मैं आपके पास आया हूं। कृपया करके मेरा मार्गदर्शन करें। तभी वह गुरू अपने स्थान से उठे और उस युवक का हाथ पकड़कर एक कुएं पर ले गए। कुएं के पास पहुंचकर उन गुरुवर ने उस युवक के हाथ में एक घड़ा थमा दिया और उस युवक से कहा कि इस घड़े में पानी भरकर वापस आश्रम में ले आओ। इतना कहकर गुरुवर वापस आश्रम लौट गए, लेकिन वह युवक वहीं खड़ा खड़ा यह सोच रहा था कि भला इस घड़े में पानी भरने से मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे मिलेगा?
आखिर मुझे यह कैसे पता चलेगा कि मैं परीक्षा में कैसे पास हो सकता हूं? लेकिन उस युवक के पास और कोई विकल्प नहीं था। इसलिए जैसा कि उसे उन गुरुवर ने कहा था, कुएं से पानी खींचा और मटके में पानी भर लिया। लेकिन यह क्या? मटके में तो कई सारे बारीक छेद हैं, जिनसे पानी धीरे धीरे रिस रहा है। वह युवक मन ही मन यह सोचने लगा कि इस घड़े में तो छेद है, मैं इसे आश्रम में कैसे ले जाऊंगा? तभी उसने सोचा कि यह छेद तो बहुत छोटे हैं। यदि मैं इसे जल्दी जल्दी ले जाऊं तो मैं आश्रम तक जल्दी पहुंच जाऊंगा और इसमें से पानी भी ज्यादा नहीं गिरेगा। यह सोचकर उस युवक ने वह घड़ा उठाया और दौड़ता हुआ वह जल्दी जल्दी उन गुरुवर के पास पहुंचा। लेकिन जब तक वह वहां आश्रम में पहुंचता है, वह पूरी तरह से भीग चुका था और मटके में पानी केवल नाममात्र के लिए ही बचा था। इसे देखकर गुरुवर मुस्कुराने लगे और उस युवक से कहते हैं कि मन का भटकाव बहुत बड़ी बीमारी है और तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है। तुम्हारे मन में विभिन्न प्रकार के विचार हैं अर्थात तुम एक समय में कई सारे विचार सोच रहे हो जिस कारण लगातार तुम्हारी मानसिक ऊर्जा व्यर्थ हो रही है और इसीलिए मेहनत करते हुए भी तुम कोई परिणाम प्राप्त नहीं कर पा रहे हो। जैसा कि उस मटके में कई सारे बारीक छेद थे और तुमने सोचा कि तुम उसे लेकर जल्दी आश्रम पहुंच जाओगे जो तुम्हारे लक्ष्य था। लेकिन तुमने देखा कि वह सारा पानी धीरे धीरे करके उस मटके से गिरता चला गया और अंत तक इस मटके में केवल नाममात्र पानी ही बचा है। इसलिए अपने मन को भटकने से रोको, क्योंकि ध्यान के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं किया जा सकता है। इस पर कुछ लोग जरूर कहेंगे कि कुछ काम केवल शारीरिक शक्ति से ही होते हैं। लेकिन याद रखें कि शरीर भी मन के आदेश पर ही चलता है। इसलिए सारे कार्य मानसिक शक्ति से ही संभव हो पाते हैं।यदि कोई लकड़हारा लकड़ी काटते समय ध्यान न रखे तो वह एक जगह पर कुल्हाड़ी नहीं चला सकता और हो सकता है कि वह खुद को भी चोट पहुंचा ले। इसलिए जानकारी और हर कार्य का मूल तत्व है ध्यान। यदि तुम अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करना चाहते हो तो इस परीक्षा में सफल होना चाहते हो तो तुम्हें एक जगह ध्यान लगाना ही सीखना होगा।क्योंकि तुम जैसी आदत डालोगे वैसा ही तुम्हारा मन बनता चला जाएगा। इसलिए जब भी तुम छोटे से छोटा कार्य करते हो तो उसे पूरा मन लगाकर करो। ऐसा करने से हमारे मन का स्वभाव बदलने लगता है और हम किसी भी कार्य में मन लगाने लगते हैं और यदि एक बार तुमने इसमें निपुणता हासिल कर ली तो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। तभी वह युवक उन गुरुवर से कहता है। किंतु गुरुवर !
याद रखें कि शरीर भी मन के आदेश पर ही चलता है। इसलिए सारे कार्य मानसिक शक्ति से ही संभव हो पाते हैं। यदि कोई लकड़हारा लकड़ी काटते समय ध्यान न रखे तो वह एक जगह पर कुल्हाड़ी नहीं चला सकता और हो सकता है कि वह खुद को भी चोट पहुंचा ले। इसलिए जानकारी और हर कार्य का मूल तत्व है ध्यान। यदि तुम अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करना चाहते हो तो इस परीक्षा में सफल होना चाहते हो तो तुम्हें एक जगह ध्यान लगाना ही सीखना होगा। क्योंकि तुम जैसी आदत डालोगे वैसा ही तुम्हारा मन बनता चला जाएगा। इसलिए जब भी तुम छोटे से छोटा कार्य करते हो तो उसे पूरा मन लगाकर करो। ऐसा करने से हमारे मन का स्वभाव बदलने लगता है और हम किसी भी कार्य में मन लगाने लगते हैं और यदि एक बार तुमने इसमें निपुणता हासिल कर ली तो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। तभी वह युवक उन गुरुवर से कहता है। किन्तु गुरुवर! जब भी मैं पढ़ने बैठता हूँ तो मन में तरह तरह के विचार आने लगते हैं और मैं मन की उन विचारों में हटा चला जाता हूँ और चाहकर भी अपने मन को रुक नहीं पाता। ऐसी स्तिथि में मैं मन की उन विचारों को कैसे छोड़ सकता हूँ?इस पर गुरुवर मुस्कुराते हुए उस युवक के हाथों में गिलास थमा देते हैं और उस गिलास में लबालब पानी भर देते हैं और उस युवक से कहते हैं कि यह गिलास तुम्हारे हाथ में है। इसकी लाश में से एक भी बूंद पानी नीचे नहीं गिरना चाहिए। इसे पकड़कर रखो। इस पर वह युवक कहता है, लेकिन कब तक? इसके जवाब में गुरुवर उस युवक से कहते हैं कि जब तक यह गिलास मैं तुम्हें नीचे रखने के लिए न कहूँ। उस युवक ने उन गुरुवर की बात मान ली और तत्परता के साथ गिलास लेकर खड़ा हो गया। आखिर में उसे भी तो अपनी योग्यता उन गुरुवर को साबित करनी थी। शुरू में सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कुछ ही देर बाद उसके मन में तरह तरह के विचार उठने लगे और यह सोचने लगा कि आखिर यह सब करने से भला क्या होगा? मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लूं, लेकिन मेरा मन मेरे बस में नहीं आने वाला है। मैं उस पर नियंत्रण नहीं साथ सकता। मैं कभी नहीं बदल पाऊंगा। यह सोचकर वह लड़का मन ही मन असहज होने लगता है और वह लगातार कोशिश करता रहा। लेकिन अब उसके शरीर के हिलने से बार बार पानी गिलास से नीचे गिर रहा था और जमीन पर फैल रहा था। यह देखकर वह गुरुवर उस युवक से कहते हैं, बेटा, जब तक तुम्हारा मन शांत था, तब तक पानी की एक बूंद भी गिलास से नीचे नहीं गिरी। लेकिन जैसे ही तुम्हारे मन में तरह तरह के विचार उठने लगे, तुम्हारा शरीर भी वैसी प्रतिक्रिया देने लगा और तुम्हारे शरीर की प्रतिक्रिया देने के कारण गिलास से पानी नीचे गिरने लगा और जमीन पर फैलने लगा। आगे और गुरुवर उस युवक को समझाते हुए कहते हैं, बेटा, जैसे गरम लोहे पर हथौड़े की चोट पड़ती है तो वह एक नया आकार लेता है, ठीक उसी तरह से एक छोटे हथौड़े के जैसा होता है, जिसकी चोट से इंसान का शरीर, व्यक्तित्व और मन आकार लेने लगता है।
अर्थात तुम्हारा यह मन गिलास में पानी की तरह है और यह बहुत आसानी से भटक जाता है, विचलित हो जाता है। यदि तुम चाहते हो कि गिलास में भरा हुआ यह पानी शांत रहे तो इसके लिए तुम्हें अपने मन को शांत रखना होगा। इसके बाद गुरुवर उस युवक को कहते हैं कि अब इस गिलास को एक बार फिर से पकड़ो और अपना सारा ध्यान अपनी सांस पर लगाओ और सांसों को अपने पेट में सीने में आता जाता महसूस करो। हाथ में जो दर्द है, जो असहजता हो रही है उसे जाने दो। मन में जो विचार आ रहे हैं उन्हें जाने दो। खुद को यह याद दिलाएं कि तुम मन नहीं हो, बल्कि मन को देख रहे हो। तुम सांस भी नहीं हो। तुम सांस को देख रहे हो। ऐसा याद करने से विचार आकर चले जाएंगे, लेकिन तुम्हें विचलित नहीं कर पाएंगे। थोड़ी देर तक वह लड़का यूं ही अभ्यास करता रहा और अब तक पानी की उसकी लाश से एक भी पानी की बूंद नीचे नहीं गिरी थी। यह देखकर वह गुरुवर मुस्कुराए और युवक से कहते हैं, बेटा, बस अब यही अभ्यास अपने काम और पढ़ाई में करना। इससे मन धीरे धीरे शांत होने लगेगा। फिर कोई भी बड़ी चीज हासिल करना मन के लिए स्वाभाविक हो जाएगा। इस प्रकार तुम किसी भी बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते हो और यदि तुम किसी परीक्षा में सफल भी होना चाहते हो तो यह भी तुम्हारे लिए बहुत सहजता से हो जाएगा। इतना कहकर वह गुरुवर शांत हो गए और वह युवक भी यह समझ चुका था कि आखिर वह इतनी सारी परीक्षाएं देने के बाद भी अब तक सफल क्यों नहीं हो पाया? उसने उन गुरु को प्रणाम किया और वापस अपने घर लौट गया। तो दोस्तों आपने आज के इस वीडियो से क्या सीखा आप मुझे कमेंट करके बताना। इस वीडियो को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करना और वीडियो को लाइक करना चैनल को सब्सक्राइब कर देना। मिलते हैं अगली वीडियो में।