किसी ने क्या खूब कहा है। जंगल में जो सीधे पेड़ होते हैं वह सबसे पहले काटे जाते हैं और जो टेढ़े मेढ़े तिरछे पेड़ होते हैं। वह सदियों तक जंगल में खड़े रहते हैं। बहुत समय पहले की बात है। किसी नगर में एक बच्चा अपने पिता के साथ जंगल में घूमने के लिए जाता है। वह बच्चा दूर से देखता है कि एक शेर एक हिरण का शिकार कर रहा था। यह देखकर उस बच्चे के मन में बहुत सारे प्रश्न उठने लगते हैं और साथ ही उसके मन में एक करुणा का भाव उत्पन्न होने लगता है। फिर वह अपने पिता से कहता है कि पिताजी! यह हिरण तो कितना कमजोर है और वह शेर तो उसे खाए जा रहा है। हमें उस हिरण को बचाना चाहिए। यह सुनकर पिता कहते हैं, लेकिन बेटा वह शेर भी तो भूखा है। अगर तुम हिरण को बचाओगे तो तुम शेर के लिए बुरे बन जाओगे। अब इस परिस्थिति में तुम क्या कर सकते हो? अब यह बात हम सबके लिए सोचने वाली है। एक जगह जहां हम किसी की मदद करते हैं, उनका फायदा कर रहे होते हैं और वही दूसरी जगह हम किसी का नुकसान कर रहे होते हैं। जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह अच्छाई और बुराई के भी दो पहलू होते हैं। तो अब सवाल यह है कि अगर किसी आदमी को अच्छा काम करना है, उसे अच्छा बनना है। तो वह किस तरह का काम करे कि वह किसी को आहत न पहुंचाएं। वह किसी को नुकसान न पहुंचाएं। मित्रो, आज की जो कहानी मैं सुनाने वाला हूँ उसमें आपको कर्मों का पूरा ज्ञान मिलेगा कि असल में कर्म क्या है और अच्छे कर्म क्या होते हैं। लेकिन इससे पहले कि आप कहानी में खो जाएं इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लें। तो चलिए कहानी शुरू करते हैं। यह बात उस समय की है। जब गुरुकुल में शिक्षाएं दी जाती थी। मतलब गुरुकुल में बच्चे सीखने जाते थे, वहीं पर रहते थे, वहीं पर प्रकृति का आनंद लेते थे और वहीं पर अपनी शिक्षाएं ग्रहण करते थे। ऐसे ही चित्तौड़गढ़ का मोहन नाम का एक युवक गुरुकुल में शिक्षा लेने के लिए जाता है। उसके माता पिता उसे बचपन में ही गुरुकुल में भेज देते हैं। गुरुकुल में जाने के बाद बहुत सालों तक वह अपने सहपाठियों के साथ बहुत ही अच्छी से अच्छी शिक्षाएं ग्रहण करता है। उसे वहां पर जीवन के सिद्धांत सिखाया जाते थे। जीवन कैसे जीना है, कैसे रहना है, यह सभी बातें सिखाई जाती थी। उनमें से एक सिद्धांत यह सिखाया जाता है कि हमेशा भलाई का काम करो। अच्छा काम करो, सबकी मदद करो। यह सिद्धांत मोहन के दिमाग में बहुत ही गहराई से बैठ गया था। इसीलिए वह जब वापस गुरुकुल से अपनी शिक्षा ग्रहण करके आया तो वह अपने गांव में सबकी मदद किया करता था। हर किसी का काम करता था। जो कोई भी उसे जो भी काम करने को कहता तो वह किसी को मना नहीं करता था। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया एक दिन उसने अपने कानों से छुपकर सुना कि गांव के कुछ युवक उसका मजाक बना रहे हैं। वह सब कह रहे थे कि वह तो बस फायदा उठाने के लिए हैं। वह तो इतना सीधा साधा है, उसके तो मजे लो। उसका जितना हो सके उतना लाभ उठाओ।
वह किसी के भी काम को मना नहीं करता। वह दूसरों का काम करने के लिए अपना भी काम छोड़ देता है। बताओ कितना मूर्ख है? हम सभी उसे इतना मूर्ख बना देते हैं और उसे पता भी नहीं चलता है।यह सब सुनने के बाद मोहन एकदम क्रोध से भर उठा। वह बेचारा निष्पक्ष भाव से सबकी मदद किया करता था। जो भी करता था वह सच्चे दिल से किया करता था। लेकिन बदले में उसे क्या मिला। यह सुनकर उसका दिल सहम गया। फिर उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज के बाद वह किसी की भी मदद नहीं करेगा और अब मोहन गांव का एक ऐसा युवक बन चुका था जो किसी की भी मदद नहीं किया करता था, जो किसी की भी बात नहीं सुनता था, चाहे कोई कितनी भी परेशानी में क्यों ना हो, मोहन को कोई भी फर्क नहीं पड़ता था। मोहन का यह बदलाव देखकर सभी गांव वाले आश्चर्यचकित रह गए। कल तक जो दया का सागर था। इतना दयालु था। वह कुछ ही समय में इतना कैसे बदल गया? इतना निर्दयी कैसे बन गया? यह देखकर उसके माता पिता को भी उसकी बहुत चिंता हुई। उन्होंने अपने बेटे से पूछा कि बेटा ऐसी क्या बात हो गई है? तुम इतना क्यों बदल गए हो? तो मोहन ने कहा, इस जमाने में किसी की भलाई करके कुछ भी हासिल नहीं होता। यह बात मैं महसूस कर चुका हूं। मैंने जीवन में गुरुकुल से जितने भी शिक्षाएं ग्रहण की। वह सारी शिक्षाएं बेकार चली गई। वह सब व्यर्थ हो गई, क्योंकि यह संसार किसी का भी नहीं है। यहां सच्चे दिल से कोई किसी की मदद करते तो उसको बेवकूफ समझा जाता है और इतना कहते ही मोहन रोने लगा और इसके बाद मोहन बहुत परेशान रहने लगा। उसके माता पिता पहले वाला मोहन चाहते थे। वह वही मोहन चाहते थे जो सब लोगों की मदद किया कहता था। लेकिन उनका बेटा कहीं दूर निकल चुका था। दिन ब दिन हालत और भी गंभीर होती जा रही थी। एक दिन उसके माता पिता को पता चला कि पड़ोस के गांव में एक बौद्ध भिक्षु आया हुआ है और वह मानव स्वभाव के बारे में बहुत सारी बातें बता सकता है। इसीलिए उसके माता पिता मोहन को लेकर उन बौद्ध भिक्षु के पास पहुंच गए। जब वह वहां पहुंचते हैं तो वह देखते हैं कि एक औरत बौद्ध भिक्षु को बहुत ही जला कटा सुना रही थी। वह उन्हें कह रही थी कि इस को शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए। पता नहीं कहां से चले आते हैं भीख मांगने के लिए। सुबह सुबह अपना काम नहीं करते। दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं। ऐसे ही पता नहीं क्या क्या बोले जा रही थी। लेकिन बहुत भिक्षु तो भिक्षा मांगकर ही खाते हैं उन्हें तो सबकुछ सहना पड़ता है। इसीलिए वह बौद्ध भिक्षु एकदम शांत खड़ा हुआ था। उसमें क्रोध का भाव बिल्कुल भी नहीं दिखाई दे रहा था। और जब उस भिक्षु को उस घर से भिक्षा नहीं मिली तो वह दूसरे घरों की तरफ निकल गया। यह सारा दृश्य मोहन भी देख रहा था। इसके बाद उसके माता पिता कुछ गांव के लोगों से पूछकर उस बौद्ध भिक्षु के ठिकाने पर पहुंचते हैं। वहां पर पहुंचकर वह देखते हैं कि यह तो वही बौद्ध भिक्षु था जो गांव से भिक्षा मांगकर वापस लौट आया था। जो गांव में भिक्षा मांग
रहा था। और जिसे वह औरत जली कटी सुना रही थी, उसे देखने के बाद मोहन और उसके माता पिता ने उन्हें प्रणाम किया और वे वहीं पर बैठ गए। उसके बाद में उसके माता पिता ने सारी परिस्थिति बौद्ध भिक्षु को बताई। उन्होंने अपने बेटे का जिक्र करते हुए बताया कि हमारा बेटा पहले परिस्थिति बौद्ध भिक्षु को बताई। उन्होंने अपने बेटे का जिक्र करते हुए बताया कि हमारा बेटा पहले बहुत दयालु हुआ करता था। सबकी मदद किया करता था। सबकी बातें सुना करता था। लेकिन अचानक पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि अब यह किसी की भी मदद नहीं करता। कोई इसके सामने पर भी रहा होता है तो भी यह उसे पानी तक नहीं पिलाता। ऐसा स्वभाव हो गया है। इसका हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह बदलाव हुआ कैसे? इससे पहले कि वह बौद्ध भिक्षु कुछ जवाब देता, वह औरत जो गांव में भिक्षु को जली कटी सुना रही थी। वह अपने बेटे को लेकर वहीं पर पहुंच गई और हाथ जोड़कर उस भिक्षु से प्रार्थना करने लगी कि मेरा बेटा बहुत बीमार है। अचानक से इसे बुखार आया और गांव के लोगों ने बताया कि आप इसकी मदद कर सकते हैं। आप ही इसे ठीक कर सकते हैं। कृपया मेरे बेटे को ठीक कर दीजिए। यह सुनकर वह बौद्ध भिक्षु तुरंत उस बच्चे का उपचार करने लगा और कुछ ही समय में औषधियां देने के बाद वह बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है। यह सब देखकर वह औरत कुछ भिक्षा देकर प्रणाम करके वापस चली जाती है। यह सारा दृश्य भी मोहन देख रहा था। मोहन के मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे और जब वह इसका कोई जवाब नहीं ढूंढ पाया तो उसने उन बहुत दिनों से पूछा। शायद आपने पहचाना नहीं। यह वही औरत थी जो आपको जली कटी सुना रही थी, जो गांव में आपको भिक्षा देने से मना कर रही थी। शायद आपने उसे पहचाना नहीं, नहीं तो आप उसकी मदद नहीं करते।यह सुनकर वह बौद्ध भिक्षु मुस्कुराने लगते हैं। इसके बाद वह बौद्ध भिक्षु मोहन को बताते हैं कि दूसरों की भलाई करने में कुछ अवस्थाओं में दुख मिलता है। लेकिन अगर तुम कर्मों का सिद्धांत समझ लेते हो तो अच्छाई और बुराई दोनों के भेद तुम्हारे सामने स्पष्ट हो जाएंगे। मैं भली भाँति जानता था कि यह वही औरत थी, लेकिन मैंने बिना कोई द्वेष का भाव रखे हुए मैंने वही किया जो मेरा कर्तव्य था। जब आप किसी की भलाई या किसी की अच्छाई बिना किसी लालच के करते हैं। बिना किसी बदले की भावना के करते हो, बिना किसी द्वेष के करते हो, वही अच्छाई होती है। लेकिन अक्सर जब हम किसी की मदद करते हैं तो हमारे मन में यही भावना बस जाती है कि बदले में वह इंसान भी मेरी मदद करें। लेकिन जरूरत पड़ने पर जब वह हमारी सहायता नहीं करता तो हमें दुख होता है। इसीलिए किसी भी इंसान के साथ बिना कुछ पाने के भाव से उसका भला करो और इतना ही भला करो जितना तुम्हारा सामर्थ्य हो। मतलब तुम्हारी आर्थिक और शारीरिक क्षमता के हिसाब से। ताकि अगर कल को वह इंसान तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करे तो तुम्हें उसका खेद ना हो, उसका पश्चाताप ना हो कि मैं ने तो इसके लिए इतना कुछ कर दिया
और यहां अब मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है। इसीलिए किसी का उतना ही भला करो जिससे तुम आहत न हो। दूसरी बात, किसी दूसरे परिवार के झगड़े के बीच में तुम कभी मत पड़ना। यदि अगर कोई पति पत्नी आपस में लड़ रहे हैं और वह पति अपनी पत्नी को पीट रहा है, तुम उसे बचाने के लिए पहुंच जाते हो कि भाई तुम औरतों को क्यों पीट रहे हो? तो ऐसा करना तुमको संकट में डाल सकता है। क्योंकि वही औरत जिसकी तुम मदद करने के लिए गए हो। वह यह कह सकती है कि यह हमारे आपस की बात है। तुम्हें इससे क्या लेना देना? और फिर इसका तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं होगा। इसीलिए कभी भी दूसरे के फटे में अपनी टांग मत लड़ाना। अगर ऐसी स्थिति कभी पैदा हो जाए, कोई तुमसे मदद मांगे तो दरबारियों तक खबर पहुंचा दो। अदालत उसका फैसला करेगी। तीसरी बात, अपने विवेक का इस्तेमाल करो। अपनी आंखें खोल कर देखो कि किसे वास्तविक रूप से मदद की जरूरत है और कौन ढोंग कर रहा है। क्योंकि अक्सर लोग दया पात्र का दिखावा करके आपको बेवकूफ बनाकर आपसे मदद ले लेते हैं। जैसे कि आजकल हम बहुत सारी जगह पर देखते हैं, बस अड्डे पर, रेलवे स्टेशन पर कि बहुत सारे छोटे छोटे बच्चे भीख मांगते रहते हैं। अब उसमें दो स्थितियां पैदा होती हैं। अगर आप उनको भीख देते हो तो आप भीख मांगने को बढ़ावा देते हो और अगर भीख नहीं देते हो तो वह बच्चा शायद आज खाना पीना खा पाएं। इसीलिए ऐसी स्थिति में आपको अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। अब उसको पैसे देने की बजाय खाना खिला सकते हूं या कुछ किताबें दिला सकते हो। इसीलिए सही तरीके से मदद करने के लिए विवेक का होना बहुत जरूरी है, वरना तो आपके धन का दुरुपयोग ही होगा। और एक बात जो समझने की है,अगर किसी की भलाई करनी है तो खुद की भलाई करो। अगर तुम खुद जीवंत हो गए, अगर तुम खुद बदल गए तो जमाना अपने आप ही बदल जाएगा। इसीलिए कहीं आपने अपने मन में यह भ्रम तो नहीं बना रखा है कि मैं तो अच्छा इंसान हूं और मैं दूसरों की मदद करता हूं तो वह आपका अहंकार का रूप है।
इंसान कभी भी आखिर तक पूर्ण नहीं होता और जो अपने आप को पूर्ण समझ रहा है वह धोखे में हैं। इसीलिए दूसरों को बदलने की बजाय खुद को बदलने पर ध्यान दें। इसीलिए आपको भीड़ में भी अकेला रहना सीखना होगा। आप सबके साथ हैं, सब में उपस्थित हैं। लेकिन अंदर से आप एकांत है अंदर से आप शांत हैं। अंदर से आप मौन हैं। जब आप अपने एकांत को देख लेते हैं। तो आपकी अंतर्यात्रा चालू हो जाती है। अपने अंदर के एकांत का आनंद उठाने के लिए आपको ध्यान में उतरना होगा। आपको रोजमर्रा की जिंदगी में ध्यान को एक हिस्सा बनाना होगा। ध्यान को वक्त देना होगा उसके बाद आप पाएंगे कि आपके अंदर के एकांत के समान आनंद इस दुनिया के किसी भी भोग में नहीं है, किसी भी वस्तु में नहीं है, किसी वासना में नहीं है। नदी के किनारे पड़ा हुआ छोटा सा पत्थर भी उस नदी के बहाव से कट कटकर बहुत मुलायम हो जाता है। उसमें कोई दरार, कोई कोना नहीं बचता उसी तरह ध्यान के निरंतर भाव में बहने से उसी तरह निर्मल हो जाता है। इसके बाद हम किसी भी चीज को महसूस कर सकते हैं, जिसके बाद हम वर्तमान का मतलब समझते हैं। जिसके बाद हमारे अंदर करुणा का उदय होता है। वह करुणा जो किसी विषय वस्तु से नहीं जुड़ी हुई। इसीलिए दोस्तों आज से ही अपनी अंतर्यात्रा चालू कर दें। अपने जीवन के आनंद को पहचानें क्योंकि इंसान की जिंदगी बहुत छोटी होती है। पता नहीं कब आखिरी सांस आ जाए। तो जीवन के जो पल बचे हैं। उसे उन परमानंद में बिताओ। तो दोस्तों आज के लिए बस इतना ही। कैसी लगी आपको यह कहानी कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताना और अगर आप चैनल पर नए हैं तो वीडियो को लाइक और चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लेना।