एक नगर में चैतन्य नाम का एक युवक रहता था। चैतन्य शुरू से ही बहुत ही कोमल स्वभाव का था प्रकृति से उसका बहुत ही लगाव था। वह हमेशा प्रकृति के बीच ही रहता था। उसने तरह तरह के जानवर पाल रखे थे। उसका पूरा दिन उन्हीं लोगों के बीच बीत जाता था। वह हमेशा खुश रहता था और लोगों को भी खुश रखने का प्रयास करता था। पर कई बार सबको खुश करने के चक्कर में वह खुद परेशान हो जाता था। कभी कभी लोगों की बातें उसे परेशान करने लगती थी। वह हमेशा से लोगों के बीच ही रहना पसंद करता था। पर वह चाहता था कि उसका कोई भी दोस्त दुखी ना हो। सबको खुश करने के चक्कर में वह परेशान हो जाता था। कई बार तो कुछ उसी के करीबी दोस्तों ने कह दिया कि तुम बहुत अजीब इंसान हो। लोगों को खुश करने के चक्कर में खुद की खुशी गवां देते हो। पर उसे लगा कि लोग उसे उसके काम से भटका रहे हैं। उसकी यह अच्छी आदत उससे दूर न चली जाए। वह सबकी नजर में अच्छा बनने की कोशिश करता रहता था। धीरे धीरे समय बीतने लगा। समय के साथ साथ वह और ज्यादा परेशान होने लगा। ऐसे ही एक दिन वह अपने एक पालतू जानवर को लेकर जंगल में चला गया। वहां पर उसकी भेंट एक बौद्ध भिक्षुक से हो जाती है। बौद्ध भिक्षु ने उस युवक की परीक्षा लेने की सोची। बौद्ध भिक्षु ने प्यास लगने का बहाना किया। इसलिए उन्होंने चैतन्य से पानी मांगा तो चैतन्य तुरंत अपने पास रखे पानी को उन बौद्ध भिक्षु को दे दिया। उसके पास जो भी पानी था, सब उन्होंने उस बौद्ध भिक्षु को दे दिया। पानी पीने के बाद भिक्षु कहते हैं, बेटा, ऐसा कभी नहीं करना, वरना तुम प्यास के मारे मरने लगोगे। चेतन ने कहा, गुरुजी में प्यासा रह जाऊं, पर सामने वाला नहीं। उसकी बात सुनकर भिक्षुक बहुत ही प्रभावित हो जाते हैं। बौद्ध भिक्षुक उसे आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं, आज से तुम जिस भी परेशान व्यक्ति को पानी पिला होगे उसकी सारी परेशानी दूर हो जाएगी। चैतन्य बहुत ही खुश हुआ। वह घर वापस लौट आया। वह जिस भी परेशान व्यक्ति को देखता उसे पानी पिला देता था, जिससे उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती थी। इस तरह उसने बहुत से लोगों की परेशानियों को दूर कर दिया। धीरे धीरे उसका नाम चारों तरफ फैल गया। लोग दूर दूर से अपनी परेशानियां लेकर उसके पास आते और वह झट से उनकी परेशानियों को दूर कर देता था। लोग उसकी पूजा करने लगे। उसे ईश्वर का दूत मानने लगे। कुछ लोग तो उसे ढोंगी ही समझते थे। कुछ लोग बोलते कि यह ढोंगी है। किसी को सही नहीं करता। बस झूठ मूठ का तंत्र विद्या सीखा है, जिसे लोगों पर जादू टोना कर उन्हें प्रभावित कर देता है। उसकी चारों तरफ बुराई भी होने लगी। जब चैतन्य को यह बात पता चली तो बहुत ही दुखी हुआ क्योंकि उसे लग रहा था कि वह लोगों को सही कर रहा है। लोग उसकी तारीफ कर रहे हैं। लोग खुश रहेंगे, लेकिन खुश होने की बजाय लोग उसके खिलाफ लोगों को भड़काने लगे। वह दुखी मन से फिर उस जंगल की तरफ निकल पड़ता है। जंगल में जाते जाते कई घंटे बीत गए।अंत में वह हार कर एक झरने के किनारे बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब झरने के पास पानी भरने वही बौद्ध भिक्षुक दुबारा आए तो उन्होंने चैतन्य को देखा। उसके चेहरे पर बहुत ही परेशानी साफ झलक रही थी। वह इतना परेशान था कि अपने विचारों में वह इतना खोया हुआ था कि वह उन बौद्ध महात्मा को पहचान ही नहीं पाया। बुद्ध महात्मा ने कहा, चैतन्य, क्या बात है? तुम बहुत परेशान दिखाई दे रहे हो। कोई बात है क्या? चैतन्य अपना सर ऊपर उठाया और उन बुद्ध महात्मा को देखता है, पर कोई जवाब नहीं देता है। बौद्ध महात्मा ने कहा, हम आपसे एक बार मिल चुके हैं। शायद तुम्हें याद होगा, मुझे बहुत जोर की प्यास लगी थी। जब तुमने मुझे पानी पिलाया था। तब चैतन्य अपनी खोई हुई विचारों से बाहर आया और उसने बुद्ध महात्मा को देखते ही पहचान गया। उसने उन बौद्ध महात्मा को प्रणाम किया और उनसे क्षमा मांगी और कहा, हे महात्मा, मुझे क्षमा कर दीजिएगा। मैं इतना ज्यादा अपने नकारात्मक विचारों से परेशान हूं कि मुझे याद ही नहीं रहा कि मैं आपसे कभी मिल चुका हूं। मैं आपको पहचान ही नहीं पाया। इसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूं। बुद्ध महात्मा ने कहा तुम निश्चिंत होकर अपनी परेशानी मुझे बताओ। तब चैतन्य उन महात्मा से कहता है, हे महात्मा, आपने जो वरदान दिया था, उसकी वजह से हम लोगों को तो सही कर रहे थे और लोग सही भी हो रहे थे। मैं लोगों को अपनी सेवा भी दे रहा था। मेरी कोशिश यही रहती थी कि कोई परेशान न रहे। लेकिन लोग उल्टा ही मेरे खिलाफ लोगों को भड़काने लगे। जिसकी वजह से मेरी बहुत ही बेइज्जती हो गई है और मैं बहुत गिरा हुआ महसूस कर रहा हूं। खुद को बेइज्जत महसूस कर रहा हूं मैं। क्या मुंह लेकर अपने गांव दोबारा जाऊं? तब महात्मा कहते हैं मैं तुम्हें कुछ बातें बताने जा रहा हूं, जिसे तुम ध्यान से सुनना। अगर तुम ध्यान से सुनोगे तो तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जाएगी। बुद्ध महात्मा ने कहना शुरू किया, हमें बचपन से सिखाया जाता है। ऐसा काम करो कि कोई आपसे नाराज ना हो। सब आपसे खुश रहें। पर हकीकत की बात करें तो पूरी दुनिया को एक साथ खुश तो भगवान भी नहीं कर सकते। कई बार दूसरों को खुश रखने की कोशिश हमारी ही नहीं, सामनेवाले के लिए भी मुसीबत बन जाती है। दरअसल, जो लोग सबको खुश रखने का एक तरफा बिगड़ा उठाए रहते हैं, उन्हें सही मायने में पता नहीं होता है कि असल में दूसरों को क्या चाहिए। कई बार उनके अच्छे बनने की कोशिश दूसरों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। कई बार यह चीजें संबंध खराब करने का भी कारण बनती हैं। जैसे यदि आप दूसरों को खुश करने के लिए लगातार चीजें कर रहे हैं और आपको लगता है कि लोग आपके प्रयासों की कद्र नहीं कर रहे हैं तो आपको बुरा लगना शुरू हो जाएगा। आपके मन में इस तरह के विचार आ जाएंगे। मैं तुम्हारे लिए कितना ज्यादा करता हूं, लेकिन तुम मेरे लिए कुछ नहीं करते और यह सोच अंततः आपके रिश्ते में कड़वाहट घोल देगी। हर एक को खुश रखने की चिंता समय की बर्बादी है।आप इस बात को नियंत्रित नहीं कर सकते कि दूसरे लोग कैसा महसूस करते हैं। जब आप यह सोचने में ज्यादा समय लगाते हैं कि क्या लोग खुश होंगे तो इस कार्य में आपकी ऊर्जा और समय दोनों नष्ट होंगे और आप उतना ही समय के साथ साथ परेशान होने लगेंगे। अगर आप दूसरों को खुश रखने की चिंता छोड़ दें, खुद के निर्णय लेना सीखें तो सबसे पहले आप सबसे ज्यादा खुश रहने लगते हैं। आप जितने ज्यादा सक्षम होंगे, उतने ही ज्यादा स्वतंत्रता और आत्म विश्वास हासिल करेंगे। आप जो निर्णय लेंगे, उनसे संतुष्टि महसूस करेंगे। भले ही आपके कार्य में दूसरे लोग असहमत हूं क्योंकि आपको पता होगा कि आपने सही निर्णय लिया है। आपके पास अपने लक्ष्य के लिए ज्यादा समय और ऊर्जा होगी। आपको खुश देखकर दूसरे लोग आपके जैसा बनना चाहेंगे। आप दूसरों जैसा बनने में अपनी ऊर्जा बर्बाद न करो। इसलिए आपके पास अपने मनचाहे काम करने के लिए समय और ऊर्जा होगी। जब आप उस प्रयास को अपने लक्ष्य की दिशा में लगाते हैं तो आपके सफल होने की कहीं ज्यादा संभावना होती है। व्यक्ति आदतों का गुलाम है। याद रखिए आदतों से ही व्यक्ति का स्वभाव बनता है और फिर स्वभाव से व्यक्तित्व और फिर व्यक्तित्व से व्यक्ति का जीवन बनता है। इसलिए जीवन को सुधारना हो तो आदतों को सुधारना होगा। एक बार कोई बुरी आदत पड़ जाए तो बड़ी मुश्किल से छूटती है। चलिए एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। एक व्यक्ति नदी किनारे अपने दोस्त के साथ बैठा हुआ था। तभी उसे नदी में एक कंबल बहता हुआ दिखाई दिया। उसने आव देखा न ताव कंबल को पकड़ने के लिए नदी में छलांग लगा दी और कंबल को है। वह बचाओ बचाओ चिल्लाने लगा। किनारे बैठे दोस्त ने कहा, छोड़ दे कंबल। कंबल को तुमने पकड़ पकड़ लिया। थोड़ी देर में उसे लगा कि कंबल ने उसे जकड़ लिया है और अपने साथ बहाकर ले जा रहा रखा है, कंबल को छोड़ दे। वह चिल्लाकर बोला, पहले मैंने कंबल को पकड़ा था, अब इस कंबल ने मुझे पकड़ लिया है। मैं इसे छोड़ना चाहता हूं, पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ रहा। वह व्यक्ति कंबल में पूरी तरह फंस चुका था। सबको खुश करना एक कंबल के समान है। अगर आप सबको खुश रखने की कोशिश में पड़ेंगे, तो आप कंबल में फंसते चले जाएंगे और फिर आप परेशान होते रहेंगे। कंबल के जाल से मुक्त होना है तो सबको खुश रखने की जिम्मेदारी से हटना होगा। भूल जाओ कि लोग क्या सोचेंगे आपके बारे में। जब आप खुश हैं तो दुनिया आपकी खुशी में सम्मिलित होती है। लेकिन जब आपको कोई दुख है तो लोग आपसे दूर भागने की कोशिश करते हैं। तो भूल जाइए आप ऐसे लोगों को। बस खुद को खुश रखने की कोशिश कीजिए। मस्त होकर अपनी जिंदगी को जीओ। चिंता मुक्त होकर जीओ। ऐसे जीओ जिससे आपको सबकुछ मिल गया हो। दोस्तों, विडियो अच्छी लगे तो उसे अपने दोस्तों को शेयर जरूर कीजिएगा और इस वीडियो में बने रहने के लिए सच्चे दिल से आपका बहुत बहुत आभार।