दोस्तो, आजकल की इस भागती दुनिया में हम अपने मन को शांत नहीं कर पाते। हर तरफ हमारा मन कहीं न कहीं भटकता रहता है। हमारे मन में तमाम तरह के विचार आते रहते हैं जो हमें परेशान करते रहते हैं। ना तो हमें चैन से नींद आती है और न ही हम सुख शांति से रह पाते हैं। हमारा मन हर समय अशांत रहता है, जिसकी वजह से हम अपने कार्य पर ध्यान नहीं दे पाते। जिसकी वजह से हमें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अशांत मन की वजह से हम अपनी जिंदगी को सही तरीके से जी ही नहीं पाते। चिंता और बेचैनी हर पल हमें सताती रहती है। कहते हैं अगर आपका मन शांत हो गया यानी आप अपने मन को शांत रखना सीख गए तो आप दुनिया की हर एक वस्तु पर विजय पा लेंगे।
मन के शांत होने से ही आपको असीम सुख और शांति का अनुभव होगा। आज के इस वीडियो में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि हम अपने मन को शांत कैसे करें। दोस्तों एक बार की बात है एक गरीब आदमी था। वह हर रोज नजदीक के बौद्ध मंदिर में जाकर वहां साफ सफाई का काम करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वह उसी मंदिर में अपने लिए रोज मांगता कि हे बुद्ध मुझे आशीर्वाद दीजिए ताकि मेरे पास ढेर सारा धन दौलत आ जाए। एक दिन जब गरीब व्यक्ति उस बौद्ध मंदिर में साफ सफाई कर रहा था। साफ सफाई करने के बाद जब वह प्रार्थना के लिए बैठा तो उसने वही पुरानी बात दोहराई। वह अपने लिए ढेर सारा धन दौलत मांगता। उसकी यह बात एक बौद्ध
महात्मा सुन लेते हैं। वे महात्मा बड़े ही चमत्कारिक महापुरुष थे। उन्होंने कई सारी सिद्धियां प्राप्त की थी, लेकिन कभी भी अपनी सिद्धियों का गलत उपयोग नहीं करते थे। महात्मा ने कहा कि क्या तुम मंदिर में केवल इसीलिए काम करने आते हो ताकि तुम्हें कुछ मिल जाए। उस गरीब आदमी ने पूरी ईमानदारी से कहा कि मेरे जीवन का उद्देश्य ही यही है। मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसलिए तो मैं यहां दर्शन करने आता हूं। मैं बाजार में ठेले पर सामान लगाकर भेजता हूं। पता नहीं मेरे सुख के दिन कब आएंगे। महात्मा ने कहा, तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा, तब ऊपरवाला तुम्हें आवाज नहीं लगाएगा। वह बस चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा। गरीब युवक चला गया। समय ने पलटा खाया और वह धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया कि उसका मंदिर जाना ही छूट गया। कई वर्षों बाद एक दिन वह सुबह ही मंदिर में पहुंचा और साफ सफाई करने लगा। उसे फिर वही बुद्ध महात्मा मिल जाते हैं। बुद्ध महात्मा ने उससे बड़े ही आश्चर्य में पूछा, क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो?
सुना है तुम बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वह व्यक्ति बोला, मैंने बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां भी की। पैसे की कोई कमी नहीं है, पर दिल में चैन नहीं है। मन में आता था कि मंदिर में रोज सेवा करने आता रहूं, पर कभी आ न सका। हे प्रभु! आपने मुझे सबकुछ दिया पर जिंदगी में चैन नहीं दिया। महात्मा ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था, जो तुम्हें चैन मिलेगा। तुम्हें तो धन चाहिए था जो कि तुम्हें मिल गया। तो फिर आज यहां क्या करने आए हो? उसकी आंखों में आंसू भर आया। वह वहीं पर उन बौद्ध महात्मा के चरणों में गिर पड़ा और बोला, अब कुछ मांगने के लिए नहीं आया हूं। यहां सेवा करने के लिए आया हूं बहुत। महात्मा ने उससे कहा, पहले तो यह तय कर लो कि अब कुछ मांगने
के लिए मंदिर की सेवा तो नहीं करोगे। बस मन की शांति के लिए ही आओगे। महात्मा ने कहा कि हम तुम्हें 10 सूत्र के बारे में बताएंगे। अगर तुम इन 10 सूत्र को समझ लेते हो तो तुम्हारी जिंदगी में सुख शांति आ जाएगी। लेकिन अगर तुम मेरी उन 10 बातों को सुनने के लिए तैयार हो, तभी मैं कुछ बोलूंगा। सेठ ने कहा कि हे महात्मा !
आप जो भी कहेंगे, मैं आपकी सारी बातें सुनूंगा, क्योंकि मैं अब दुनिया से ठोकर खाकर लौट आया हूं।
अब मुझे शांति चाहिए। कृपया आप मुझे 10 सूत्र बताने का कष्ट करें। महात्मा ने कहा कि मन को शांत रखने के लिए पहला सूत्र है किसी के काम में तब तक दखल न दें, जब तक कि आपसे पूछा न जाए।
महात्मा ने कहा कि कई बार यह भी देखने को मिलता है कि कुछ लोग बिना राय मांगे अपनी राय देने लगते हैं और दूसरों के कामों में दखलअंदाजी करने लगते हैं, जिससे कई बार होता है कि सामने वाले को उसकी बातें अच्छी नहीं लगती हैं। जब तक आपसे बोला न जाए, जब तक आपसे कहा न जाए, तब तक आप किसी के काम में दखलअंदाजी न दें। अगर आप हर जगह इधर उधर की फालतू की बातें बोलते रहेंगे, दूसरों के काम में टांग अड़ाते रहेंगे तो आप तमाम तरह के विचारों में उलझे रहेंगे, जो आपके मन को हमेशा अशांत करता रहेगा। महात्मा ने कहा कि मन को शांत करने के लिए दूसरा सूत्र है माफ करना और कुछ बातों को भूलना सीखें। कई बार कुछ लोगों को देखा जाता है कि कोई बात अगर उनके मन में बैठ गई तो वे उस बात पर बार बार विचार करते रहते हैं। यह क्या हो गया?
वह कैसे हो गया? उसने मेरे साथ ऐसा किया। यह सब विचार उनके दिमाग में चलते रहते हैं, जो कि
उनके दिमाग को बार बार अशांत कर देता है। पहली बात तो यह है कि माफ करने की आदत डालें। हां, अगर कोई जानबूझकर गलती कर रहा है तो उसे माफ नहीं करें। उस व्यक्ति से दूरियां ही बनाना बेहतर है। लेकिन हां, अगर किसी से भूल से गलती हो गई है तो उसे माफ कर देना चाहिए, क्योंकि माफ वही करता है जो इंसान बड़ा होता है। जब कोई इंसान किसी को माफ करता है तो उसके मन के सारे नकारात्मक विचार दूर। हो जाते हैं। उसके मन में बैठी तमाम प्रदूषित भावनायें दूर होने लगती हैं, जिससे उसका मन शांत होने लगता है और उसे अच्छा महसूस होने लगता है। इसलिए माफ करने की आदत डालें ताकि आपका दिमाग शांत रह सके। महात्मा ने कहा कि मन को शांत करने के लिए तीसरा सूत्र है पहचान पाने की लालसा न रखें। महात्मा ने उस सेठ से कहा कि सेठ। कई बार यह होता है कि लोग पहचान बनाने के चक्कर में इधर उधर का काम करते रहते हैं, जिसे बड़े लोगों के साथ उठना बैठना, उनकी जी हुजूरी करना। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वह उनकी जी हुजूरी करेंगे, बड़े लोगों के साथ रहेंगे तो महान बन जाएंगे अर्थात उनकी एक अलग पहचान होगी। समाज में तो यह सब बिल्कुल गलत बात है। तुम पहचान बनाते बनाते तुम्हारा दिमाग इतना अशांत हो जाएगा कि तुम्हें पता ही नहीं चलेगा कि इतना समय कैसे बीत गया और जितना समय बीतता जाएगा, तुम्हारा मन समय के साथ
साथ उतना ही अशांत होता चला जाएगा इसलिए पहचान बनानी है तो खुद परिश्रम करो और जब तुम खुद परिश्रम करोगे तो तुम अपनी असली कमाई खाओगे और यही कमाई तुम्हें सुख और शांति देगी। तुम्हारे मन को शांति देगी। तुम्हें भी लगेगा कि हां, हमने अपने दम पर अपने जीवन में कुछ अर्जित किया है। इसलिए सेठ लोगों की जी हुजूरी करना छोड़ो। पहचान बनाने की लालसा छोड़ो, क्योंकि यही लालसा तुम्हारे मन को शांत कर देगी। आजकल समाज में तो यही हो रहा है। कोई कहता है कि मेरा राजा के सेनापति से परिचय है तो कोई कहता है कि मेरा दोस्त ही सेनापति है। यह सब जताकर हम अपने आप को बड़ा साबित करने में लगे हुए हैं। अर्थात हम खुद को छोटा हुआ महसूस कर रहे हैं। तभी हम खुद को बड़ा बनाने के लिए बड़े लोगों से अपना परिचय बनाने में लगे रहते हैं। गुरु ने कहा कि सेठ तुम्हें यह सब छोड़ना होगा। अगर तुम यह सब छोड़ देते हो तो तुम्हारे मन को शांति मिल जायेगी। महात्मा ने आगे कहा कि मन को शांत करने के लिए चौथा सूत्र है जलन की भावना से बचें। कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है कि वह छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे से नफरत पाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि यह चीज हमारे पास होनी चाहिए थी, दूसरों के पास कैसे हो गई?
कुछ लोगों को लगता है कि जिंदगी में सिर्फ वही आगे बढ़ें। जब कोई दूसरा उनसे आगे बढ़ता है तो उन्हें जलन होने लगती है और यही जलन की भावना उनके दिमाग को बार बार अशांत करती रहती है। अगर आप दूसरों के विकास में खुश रहते हैं तो आपका मन शांत रहेगा और आप अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने लगेंगे। महात्मा ने सेठ से कहा कि सेठ कभी भी आजमाकर देखना। जब कोई तुम्हारा पड़ोसी या कोई तुमसे आगे बढ़ रहा हो या अपनी जिंदगी में विकास कर रहा हो तो तुम उसकी खुशी में शामिल होना। तुम्हें भी बहुत अच्छा लगेगा। आजकल तो हर कोई एक दूसरे से जलन की भावना रख रहा है जो कि उसके मन के अशांत होने का सबसे बड़ा कारण है। महात्मा ने सेठ से पांचवां सूत्र बताते हुए कहा, उतना ही काटें जितना चबा सकें अर्थात उतना ही काम हाथ में लें, जितना पूरा करने की क्षमता हो। महात्मा ने कहा कि सबसे पहले हमें अपनी क्षमता को परखना होता है। हमें यह जान लेना आवश्यक होता है कि हमारे पास कितनी ताकत है। हम इस काम को कर पाएंगे कि नहीं। यह सब
सोच विचार करने के बाद ही उस काम की शुरुआत करनी चाहिए। ज्यादा इधर उधर भागोगे, हर तरफ हाथ मारते रहोगे तो कोई भी काम तुम्हारा सही समय से पूरा नहीं हो पाएगा। और जब तुम्हारा कोई भी काम समय से नहीं पूरा हो पाएगा तो तुम हर समय चिंता में डूबे रहोगे। हर समय तुम्हारा मन व्याकुल रहेगा जो कि तुम्हारे मन को शांत कर देगा। इसलिए पहले अपनी क्षमता को पहचानो और उस क्षमता
के अनुरूप ही काम का चुनाव करो। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम्हारा मन शांत रहेगा। महात्मा ने कहा कि मन को शांत करने का छठा सूत्र है रोजाना ध्यान करें। यह सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है। अगर तुम सब कुछ करते हो, लेकिन तुम इस सूत्र का पालन नहीं करते हो तो तुम्हारा मन कभी भी शांत नहीं रह पाएगा। कोई भी काम करो, कितना भी तुम व्यस्त क्यों ना हो, लेकिन तुम सुबह उठकर ध्यान करने की आदत जरूर डालो। ध्यान करने से तुम्हारे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। तुम खुद को जान पाने में सफल हो पाते हो। ध्यान से तुम्हारे शरीर की सभी प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चलती हैं और शरीर के हार्मोन संतुलित मात्रा में अपना अपना काम करते रहते हैं। इसलिए प्रतिदिन ध्यान करने की आदत डालो क्योंकि ध्यान ही एक ऐसा तरीका है जिससे हम कुछ भी पा सकते हैं। महात्मा ने सातवां सूत्र बताते हुए कहा, खुद को माहौल में ढालने की चेष्टा करें। जिस माहौल में तुम रह रहे हो, सबसे पहले उसमें डालने की कोशिश करो, क्योंकि रहना तो तुम्हें वहीं है। मान लो अपने भारतवर्ष में जब बारिश का मौसम आता है तो हम अपने अनाज को अपने घरों में रख लेते हैं। ठंड का मौसम आता है तो हम ऊनी कपड़े पहनने लगते हैं। गर्मी का मौसम आता है तो हम हल्के सूती कपड़े पहनते हैं। इसका मतलब है कि हम मौसम के हिसाब से अपने आप को ढाल ले रहे हैं। महात्मा कहते हैं कि इंसान वही सफल होता है जो अपने आप को उस परिवेश में ढाल पाता है। परिस्थितियां कैसी भी हो, लेकिन अगर तुम उन परिस्थितियों के हिसाब से ढलने में सफल हो गए तो फिर तुम्हारा मन शांत रहेगा। महात्मा ने सेठ को आठवां सूत्र बताते हुए कहा, जो कभी बदल नहीं सकता, उसे बदलने की कोशिश न करें। कई बार हम कुछ ऐसे कार्य करने लगते हैं, जिसका न तो कोई असर होता है और न ही कोई पैर। अगर ऐसा कार्य हम करेंगे तो हमारा समय बर्बाद होगा। इसमें कुछ मिलने वाला नहीं है। जो हमारे वश में है, हमें उस काम को पूरी ऊर्जा के साथ करना चाहिए। अगर हमें बड़े बदलाव लाना है तो पहले हमें छोटे छोटे बदलाव खुद हमारे अंदर लाने होंगे। बड़ी सफलता अर्जित करने से पहले खुद की छोटी छोटी गलतियों को सुधारना बहुत ही जरूरी होता है। मान लो अगर गर्मी पड़ रही है तो तुम ठंडी का मौसम नहीं ला सकते हो या मैं कहूं कि गर्मी के मौसम में तो। मगर सोचो कि मौसम ठंडा हो जाए तो यह कभी नहीं होने वाला है। तुम्हें खुद को बदलना पड़ेगा। खुद को बदल लोगे तो मौसम का कोई भी प्रभाव तुम पर नहीं पड़ेगा। इसलिए जो कभी बदला नहीं जा सकता है, तुम उसे बदलने में अपना समय बर्बाद मत करो।
महात्मा ने नौवां सूत्र बताते हुए कहा, किसी भी काम को टाले नहीं और ऐसा कोई काम न करें जिससे कि बाद में आपको पछताना पड़े। महात्मा ने कहा कि अक्सर लोग यही गलतियां करते रहते हैं कि आज का काम कल पर टालते रहते हैं और फिर जब कल का काम करना होता है तो उनके पास पहले वाले काम का बोझ तो रहता ही है साथ ही साथ आज के भी काम का बोझ बढ़ जाता है तो ऐसे लोग उस काम को नहीं कर पाते हैं। इसलिए जो आज का काम है उसे आज ही कर लो। आज समय रहते जो भी काम है तुम उस काम को सही समय पर निपटा दो जिससे कि बाद में तुम्हें कोई पछतावा ना हो। मन को शांत रखने के लिए महात्मा 10वां और अंतिम सूत्र बताते हुए कहते हैं, दिमाग को खाली न रहने दें। कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। अगर तुम्हारा दिमाग खाली होगा, तुम्हारे
पास कोई काम नहीं होगा तो तुम्हारे दिमाग में तमाम तरह के विचार आते रहेंगे और वे विचार समय के
साथ साथ इतने बढ़ जाएंगे कि तुम्हारे मन को शांत कर देंगे। इसलिए अपने जीवन में कोई उद्देश्य रखो और फिर उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरी सकारात्मक ऊर्जा के साथ जुट जाओ, जिसके जीवन में
कोई उद्देश्य ही नहीं रहता है या वह अपने उद्देश्य को सही से पालन नहीं करता है तो उसके दिमाग में
सूत्र बता कर शेर से कहते हैं कि सेठ अगर तुम यह सोच अपनी जिंदगी में इसका अनुसरण करोगे तो
तमाम तरह के फालतू के विचार पनपते रहते हैं, जिससे कि उसका मन अशांत हो जाता है। महात्मा 10 तुम्हारा दिमाग कभी भी इधर उधर भागेगा नहीं। तुम्हारा दिमाग शांत रहेगा। हमेशा तुम सकारात्मक ऊर्जा से भरे रहोगे। इतना कहकर महात्मा मौन हो गए। शेर इतने साल से मंदिर आ रहा था, पर उसे आज जो मिला था, वह शायद उसे इतने सालों में कहीं और नहीं मिला था। अब उसके दिमाग के विचार ठहर गए थे। उसके चेहरे पर एक शांति दिखाई दे रही थी। वह उन महात्मा को प्रणाम करता हुआ अपने घर वापस आ जाता है। दोस्तों मुझे उम्मीद है इस वीडियो से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा और अगर आप नए हैं तो हमसे जुड़ने के लिए इस चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलिएगा। मिलते हैं अगली वीडियो में कुछ नए विचारों के साथ तब तक के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
.