एक बार एक बौद्ध भिक्षु अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जिस प्रकार एक बीज को जमीन में डाला जाता है, फिर धीरे धीरे बीज अंकुरित होता है और फिर वह एक पौधा बनता है और फिर वह पौधा। विपरीत परिस्थितियों को सहते हुए कभी धूप, कभी बरसात फिर भी वह बड़ा होता जाता है और कई वर्षों के पश्चात वह फल देना शुरू करता है। लेकिन इंसान की सबसे बड़ी गलती यही होती है। कि जब वह मेहनत करता है तो उसे उसका फल तुरंत चाहिए होता है। लेकिन प्रकृति में ऐसा कहीं भी नहीं होता। जो मेहनत हम आज करते हैं उसका फल हमें भविष्य में मिलेगा और फल मिलने से प
हले हमें भी विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ेगा। और अगर हम उन परिस्थितियों में हार मान लेते हैं तो हमें अपनी मेहनत का फल कभी नहीं मिलेगा। यही अटल सत्य है और इसी तरह हमारी प्रकृति काम करती है। बौद्ध भिक्षु ने अपने सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा कि तुमने अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा। जो शुरुआत में बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन कुछ समय बाद जब उन्हें मेहनत का फल नहीं मिलता तो वह निराश हो जाते हैं और फिर उसके बाद मेहनत करना भी छोड़ देते हैं। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एहसास होता है कि अगर हम ऐसे ही मेहनत करते रहते, उसी काम पर लगे रहे होते तो आज हमें कामयाबी मिल गई होती। क्योंकि जब वह अपने आसपास के लोगों को उसी काम में कामयाब होता देखता है। तो उसे एहसास होता है मुझे उसी काम में लगा हुआ रहना चाहिए था। उसी लक्ष्य पर केंद्रित रहना चाहिए था तो शायद मुझे भी कामयाबी मिल गई होती। लेकिन उस समय पश्चाताप के अलावा उसके पास और कोई रास्ता नहीं होता। न तो वह दोबारा पीछे पलटकर समय को बदल सकता है और न ही भविष्य में उसी काम को दोबारा शुरू करने की हिम्मत जुटा पाता है। जब भिक्षु अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे तभी उनका उपदेश एक बुजुर्ग आदमी भी खड़ा होकर सुन रहा था और फिर वह अचानक से बीच में बोल पड़ा। उसने कहा गुरुवर, मेरी उम्र काफी ज्यादा हो चुकी है। पूरी उम्र का अनुभव है मेरे पास और मैंने अपने जीवन में यह भी पाया है कि बहुत से लोग पूरी मेहनत करते हैं, कभी हार नहीं मानते, लेकिन उसके बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिलती। मैं खुद इसका बहुत बड़ा उदाहरण हूं। मैंने अपना पूरा जीवन एक ही लक्ष्य पर केंद्रित रखा, लेकिन उसका फल मुझे आज तक नहीं मिला। तो मैं कैसे मान लूं कि जो आप कह रहे हैं, वह सही है? आप इन शिष्यों को गलत दिशा पर ले जा रहे हैं। उन्हें सही दिशा दिखाइए। उन्हें भ्रमित मत करिए, वरना आपको बहुत बड़ा पाप लगेगा। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, मैं तुम्हारे पूरे जीवन की शंका केवल कुछ समय में दूर कर सकता हूं, लेकिन उसके लिए तुम्हें समर्पण की भावना रखनी होगी।
अगर तुम समर्पित होकर वह करोगे जो मैं कहूंगा तो तुम्हारे मन के सारे संशय दूर हो जाएंगे। फिर तुम्हें सही मार्ग पता चलेगा कि सफलता के लिए किस तरह कदम दर कदम आगे बढ़ा जाता है। अगर तुम कुछ दिनों के लिए मेरे आश्रम में रहने को तैयार हो तो तुम्हें वह रास्ता पता चल जाएगा। तुम्हारे मन के संशय दूर हो जाएंगे। वह बुजुर्ग तो अपनी जिंदगी से हार ही चुके थे, क्योंकि लाख कोशिश करने पर भी उन्हें अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिली थी। इसीलिए वह आश्रम में रहने को तैयार हो गए। लेकिन एक शर्त पर उन्होंने उस गुरु से कहा कि गुरुवर अगर मेरी बात गलत साबित होती है तो इन शिष्यों को एक बहुत बड़ी सीख मिलेगी, जो मुझे पूरी जिंदगी में नहीं मिल पाई। लेकिन अगर आप गलत साबित होते हैं तो आपको यह गुरु की पदवी छोड़कर यहां से चले जाना होगा, क्योंकि आप इस तरह शिष्यों को भ्रमित नहीं कर सकते। यह गलत है और यह पाप है। आपको फिर उसके बाद इस गद्दी पर कोई हक नहीं रह जाएगा। गुरु ने यह शर्त स्वीकार कर ली। अगले दिन सुबह सुबह गुरु अपने हथेली पर कुछ बीज रखकर उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास पहुंचे। उसके सामने अपनी हथेली करते हुए गुरु ने कहा कि तुम इनमें से कोई भी चार बीज चुन लो। बुजुर्ग आदमी ने बिना कुछ सोचे समझे उनमें से चार बीज उठा लिए। इसके बाद गुरु ने उस व्यक्ति से कहा कि अब इन बीजों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। तुम इन बीजों को कैसे फल में परिवर्तित करते हो? यह तुम्हारे ऊपर रहा। इसके लिए तुम आश्रम का कोई भी हिस्सा चुन सकते हो और किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत पड़े तो सीधा मेरे पास आ सकते हो। बुजुर्ग आदमी ने आश्रम का वह हिस्सा चुना जहां पर बहुत से पौधे नहीं थे। जो जमीन खाली थी और जहां पर सिर्फ घास उगी हुई थी। उसने थोड़ी थोड़ी दूरी पर कुछ मिट्टी हटाकर वह बीज वहां पर डाल दिए। नियमित रूप से उन बीजों की देखभाल करने लगा। वह समय से उनमें पानी देता। किसी भी पशु या पक्षी को उसके पास आने भी नहीं देता। कुछ समय बाद उन बीजों में से पौधे निकलने लगे, लेकिन पौधे सिर्फ तीन बीजों में से निकले। एक बीज में से कोई पौधा नहीं निकला। मतलब वह बीज वही जमीन में खराब हो चुका था। धीरे धीरे बुजुर्ग आदमी ने अपनी बात सही साबित करने के लिए उन पौधों की और भी ज्यादा देखभाल शुरू कर दी। वह नियमित रूप से उनमें खाद डालता, उनमें पानी देता और पशु पक्षियों से भी उन्हें बचाकर रखता। लेकिन इसके बावजूद उनमें से सिर्फ एक पौधा ही पनप पाया। बाकी के दो और पौधे धूप की वजह से बरसात की वजह से वहीं पर बर्बाद हो गई। आखिरकार बुजुर्ग आदमी को एक पौधे में सफलता मिली और आखिरकार उसने पाया कि उस पौधे पर फल भी आने लगे थे। यह देखकर बुजुर्ग आदमी को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह जल्दी से उस गुरु को बुलाकर ले आए। उन्हें दिखाने के लिए कि जो पौधा उन्होंने लगाया था, उसमें अब फल आने लगे हैं।
गुरु ने जब यह देखा तो उन्होने बुजुर्ग आदमी से एक सवाल पूछा। उन्होने पूछा कि मैंने तुम्हें चार बीज दिए थे लेकिन उसमें से सिर्फ तीन ही पौधे बन पाए और तीनों पौधों में से सिर्फ एक ही पेड़ बन पाया जो आज फल दे रहा है। ऐसा क्यों हुआ? बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि गुरुवर ऐसा ही होता है। हर बीज पेड़ नहीं बनता। लेकिन चार बीजों में से एक तो पेड़ बना। क्या यह कम सफलता है? इसके बाद संध्या समय उपदेश का वक्त हो चला था। सभी शिष्य अपने अपने स्थान पर उपदेश सुनने के लिए बैठे हुए थे। इसके बाद गुरु उस बुजुर्ग व्यक्ति के साथ वहां पर पहुंचते हैं और सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि जमीन में बीज डालते वक्त अक्सर हम लोग बीज की गुणवत्ता और उस जमीन के बारे में ख्याल ही नहीं करते। किस तरह का बीज हम उपयोग में ला रहे हैं और किस तरह की जमीन पर वह उगेगा यानी कि पौधा बनेगा और कल को फल देगा, इसके बारे में हम सोच विचार नहीं करते। हमारे हाथ में जिस भी प्रकार का बीज आता है, हम बिना कुछ सोचे समझे उसे किसी भी तरह की जमीन पर फेंक देते हैं, जिससे कि वह पौधा नहीं बन पाता। उसी प्रकार अपने जीवन का लक्ष्य चुनते हुए हमें बहुत सतर्क होना पड़ता है क्योंकि अगर हमारे बीज रूपी लक्ष्य की गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी तो हमें भविष्य में नाकामयाबी ही हाथ लगेगी। इसीलिए हम किस प्रकार का लक्ष्य चुनते हैं? उससे हमें भविष्य में क्या फल मिलेगा यह हमें पहले ही सोच लेना चाहिए और उस बीज को अपने मन में पूरी तरह से बैठा लेना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि मन इस धरती की भाँती है, जमीन की भाँति है और लक्ष्य एक बीज की भांति हैं। इसीलिए उस बीज को जमीन पर डालने से पहले उस जमीन को भी साफ करना जरूरी होता है। अक्सर हम कभी भी बीज को जमीन पर डालते वक्त यह नहीं सोचते कि उस जमीन को भी तैयार करने की जरूरत होती है। वहां से खरपतवार हटानी पड़ती है। घास इत्यादि हटानी पड़ती है। उसमें पानी देना होता है। और फिर वह जमीन कहीं जाकर तैयार होती है। वही बात हमारे मन पर भी लागू होती है। अक्सर हमारे मन में जो भी विचार आता है, दूसरों से प्रभावित होकर जो भी लक्ष्य हम निर्धारित करते हैं, वह पूरी तरह से सटीक या सही नहीं होता है। वह दूसरों से प्रभावित होकर लिया गया फैसला होता है। लेकिन अगर हम ध्यान के द्वारा अपने मन की जमीन को खाली कर देते हैं। अपने मस्तिष्क को विचारों से खाली करके निष्पक्ष होकर उस लक्ष्य के बारे में सोचते हैं, विचार करते हैं और यह देख पाते हैं कि भविष्य में लक्ष्य मुझे किस प्रकार के फल देगा। तो फिर वह बीज हमारे मन में और भी गहरा बैठता चला जाता है और उसका परिणाम हमें भविष्य में उसी रूप में मिलता है। यह दो बातें याद रखते ही हम अपने लक्ष्य में कामयाब हो जाएं। ऐसा भी जरूरी नहीं होता, क्योंकि विपरीत परिस्थितियां हमेशा आती रहती हैं। लेकिन एक समझदार आदमी हमेशा जानता है कि विपरीत परिस्थितियां उसे मजबूत बनाने के लिए आती हैं,
न कि उसे कमजोर बनाने के लिए। लेकिन कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर अपने लक्ष्य को बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं जो कि एक इंसान की सबसे बड़ी गलती होती है। क्योंकि पौधा तो फल तभी देगा जब वह पेड़ बनेगा लेकिन हम उसका पेड़ बनने का इंतजार ही नहीं। झूठ का सही लग। नहीं करना चाहते। एक पौधा। नाना प्रकार की विषम परिस्थितियों से होकर गुजरता है। कभी बहुत ज्यादा करनी होती है। बहुत ज्यादा खूब होती है तो कभी आंधी तूफान और बारिश आ जाती है। लेकिन अगर वह उन परिस्थितियों को सहन नहीं कर पायेगा तो वह कभी भी पेड़ नहीं बन पाएगा, फल नहीं दे पाएगा। उसे मजबूत पेड़ बनने के लिए उन परिस्थितियों से होकर गुजरना ही पड़ेगा। इसी प्रकार एक इंसान को भी समाज के ताने सहने पड़ते हैं। कई लोग कहेंगे कि इतना वक्त हो गए इसको काम करते हुए, लेकिन इसको सफलता नहीं मिल रही। यह तो मूर्ख है। इतना समय कौन देता है किसी काम में? लेकिन यह सब विपरीत परिस्थितियों होती हैं और जो आदमी इनको पार कर जाता है वह अपने लक्ष्य के लिए और भी मजबूती के साथ तैयार होता रहता है। और आखिर में यह सब काम पूरे होने के बाद एक इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है उसका संयम। उसको इंतजार करना पड़ेगा, उसे संयम रखना होगा। उसे चुप रहकर निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहना होगा और एक दिन ऐसा भी आएगा जब वह पौधा पेड़ बन जाएगा और वह एक बहुत ही मीठे फल देगा। क्योंकि जितना समय एक पेड़ को बड़ा होने में लगता है, उतने ही मीठे फल उसके पाए जाते हैं। इसीलिए जिंदगी में कभी हार मत मानना। अपने लक्ष्य की तरफ निरंतर बढते रहना। अपनी बात खत्म करते हुए गुरु ने बुजुर्ग आदमी से पूछा कि अगर आपके मन में अभी कोई संशय है कि आप जीवन में क्यों सफलता हासिल नहीं कर पाए तो आप पूछ सकते हैं, लेकिन जो बातें मैंने बताई हैं, अगर आपने उन बातों का पालन किया होता तो आप जरूर कामयाब हो गए होते। बुजुर्ग आदमी ने हाथ जोड़कर गुरुवार को कहा कि हे गुरुवर, ये शिष्य बहुत ही किस्मत वाले हैं कि इन्हें आप जैसा मार्गदर्शक मिला। काश मुझे भी अपनी जवानी में ऐसा ही मार्गदर्शन करने वाला कोई गुरु मिला होता तो मैं भी अपने जीवन में कामयाब हो सकता था। लेकिन देरी से आए दुरुस्त आए। कम से कम आज तो मुझे पता चला कि मुझसे क्या गलतियां हुई थी और क्या कमियां रह गई थी। शायद मैं अपने बच्चों को सही शिक्षा दे पाऊं। शायद उन्हें सही रास्ता दिखा पाऊं। आज मेरी आंखें खुल गई, लेकिन दर्द इस बात का है कि मेरी आंखें इतनी देर से खुली हैं। अब मेरे पास करने के लिए भी कुछ नहीं बचा। अगर अब मैं यह ज्ञान ग्रहण कर लूंगा तो मेरा इससे क्या बदलाव होगा? यह सिर्फ दुख और पीड़ा देगा कि मुझसे ये गलतियां हुई। गुरुवर ने बुजुर्ग व्यक्ति की पीठ थपथपाते हुए कहा कि जिंदगी में ज्ञान ग्रहण करने के लिए कोई उम्र नहीं होती।
न कि उसे कमजोर बनाने के लिए। लेकिन कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर अपने लक्ष्य को बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं जो कि एक इंसान की सबसे बड़ी गलती होती है। क्योंकि पौधा तो फल तभी देगा जब वह पेड़ बनेगा लेकिन हम उसका पेड़ बनने का इंतजार ही नहीं करते। झूठ का सही लग। नहीं करना चाहते। एक पौधा। नाना प्रकार की विषम परिस्थितियों से होकर गुजरता है। कभी बहुत ज्यादा घरमी होती है। बहुत ज्यादा धुप होती है तो कभी आंधी तूफान और बारिश आ जाती है। लेकिन अगर वह उन परिस्थितियों को सहन नहीं कर पायेगा तो वह कभी भी पेड़ नहीं बन पाएगा, फल नहीं दे पाएगा। उसे मजबूत पेड़ बनने के लिए उन परिस्थितियों से होकर गुजरना ही पड़ेगा। इसी प्रकार एक इंसान को भी समाज के ताने सहने पड़ते हैं। कई लोग कहेंगे कि इतना वक्त हो गए इसको काम करते हुए, लेकिन इसको सफलता नहीं मिल रही। यह तो मूर्ख है। इतना समय कौन देता है किसी काम में? लेकिन यह सब विपरीत परिस्थितियों होती हैं और जो आदमी इनको पार कर जाता है वह अपने लक्ष्य के लिए और भी मजबूती के साथ तैयार होता रहता है। और आखिर में यह सब काम पूरे होने के बाद एक इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है उसका संयम। उसको इंतजार करना पड़ेगा, उसे संयम रखना होगा। उसे चुप रहकर निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहना होगा और एक दिन ऐसा भी आएगा जब वह पौधा पेड़ बन जाएगा और वह एक बहुत ही मीठे फल देगा। क्योंकि जितना समय एक पेड़ को बड़ा होने में लगता है, उतने ही मीठे फल उसके पाए जाते हैं। इसीलिए जिंदगी में कभी हार मत मानना। अपने लक्ष्य की तरफ निरंतर बढते रहना। अपनी बात खत्म करते हुए गुरु ने बुजुर्ग आदमी से पूछा कि अगर आपके मन में अभी कोई संशय है कि आप जीवन में क्यों सफलता हासिल नहीं कर पाए तो आप पूछ सकते हैं, लेकिन जो बातें मैंने बताई हैं, अगर आपने उन बातों का पालन किया होता तो आप जरूर कामयाब हो गए होते। बुजुर्ग आदमी ने हाथ जोड़कर गुरुवार को कहा कि हे गुरुवर, ये शिष्य बहुत ही किस्मत वाले हैं कि इन्हें आप जैसा मार्गदर्शक मिला। काश मुझे भी अपनी जवानी में ऐसा ही मार्गदर्शन करने वाला कोई गुरु मिला होता तो मैं भी अपने जीवन में कामयाब हो सकता था। लेकिन देरी से आए दुरुस्त आए। कम से कम आज तो मुझे पता चला कि मुझसे क्या गलतियां हुई थी और क्या कमियां रह गई थी। शायद मैं अपने बच्चों को सही शिक्षा दे पाऊं। शायद उन्हें सही रास्ता दिखा पाऊं। आज मेरी आंखें खुल गई, लेकिन दर्द इस बात का है कि मेरी आंखें इतनी देर से खुली हैं। अब मेरे पास करने के लिए भी कुछ नहीं बचा। अगर अब मैं यह ज्ञान ग्रहण कर लूंगा तो मेरा इससे क्या बदलाव होगा? यह सिर्फ दुख और पीड़ा देगा कि मुझसे ये गलतियां हुई। गुरुवर ने बुजुर्ग व्यक्ति की पीठ थपथपाते हुए कहा कि जिंदगी में ज्ञान ग्रहण करने के लिए कोई उम्र नहीं होती।
तुम्हें लग रहा है कि तुम्हारा समय बीत चुका है, लेकिन जरा सोचो कि जाने से पहले यानी कि मरने से पहले तुम्हें एक असीम सत्य के बारे में पता चला। एक ज्ञान के बारे में पता चला, अपनी गलतियों के बारे में पता चला। कितने ही लोग होते हैं दुनिया में कि यह जाने बिना ही चली जाती हैं कि उनसे जीवन में क्या क्या गलतियां हुई हैं। तुम तो किस्मत वाले हो। तुम्हें तो पता चल गया है। तुम आने वाली पीढ़ियों को सही रास्ता दिखा सकते हो और सही रास्ता दिखाने से ज्यादा बड़ा काम या ज्यादा बड़ा लक्ष्य इस दुनिया में कोई नहीं हो सकता। अगर कोई लक्ष्य हम सिर्फ अपने लिए निर्धारित करते हैं तो उससे सिर्फ हमारा भला होता है। लेकिन जब हम दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं तो उससे पूरी कायनात का भला होता है तो पूरी दुनिया उससे प्रेरित होती है। इसीलिए निराश मत होना। जीवन के प्रति सकारात्मकता हमेशा बनाए रखना। गुरुवर ने अपना उपदेश खत्म करते हुए कहा कि हम कल से एक लक्ष्य पर काम करना शुरू करेंगे। उस लक्ष्य को अपने मन रूपी धरती में पूरी तरह से बोएंगे ताकि वह भविष्य में अच्छे फल दे सके। तो दोस्तो कैसी लगी यह कहानी, कमेंट सेक्शन में जरूर बताना। अगर अच्छी लगी हो तो इस चैनल को सब्सक्राइब करके नोटिफिकेशन को जरूर पेश कर देना ताकि ऐसे ही ज्ञानवर्धक कहानियों की नोटिफिकेशन सीधे आपके पास पहुंचे आपका दिल से आभार!