दोस्तों आज हम क्या हैं और आगे हमारी जिंदगी में क्या होने वाला है यह सब हमारे विचारों पर निर्भर करता है। जैसा हम विचार करते हैं वैसा ही हम बनते चले जाते हैं। अगर हमारे दिमाग में विचार अच्छा आया तो हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। अगर हमारे दिमाग में बुरा विचार आया तो वह हमारे अंदर नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। इंसान बीमार है, इंसान स्वस्थ है। उसकी जिंदगी में क्या होने वाला है, यह सब हमारे विचारों पर ही निर्भर करता है। तो आज के इस वीडियो में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार हम अपने विचारों को बदलें कि हमारा पूरा जीवन बदल जाए अर्थात हमारा जीवन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाए। हमारे जीवन की सारी दुख तकलीफें दूर हो जाएं। तो दोस्तों इस वीडियो के आखिर तक जरूर बने रहिएगा। जनकपुर नाम का एक गांव था। उस गांव में हरियाली बहुत थी क्योंकि गांव से थोड़ी ही दूर पर एक नदी बहती थी। गांव के सभी लोगों का जीवन उस नदी पर ही आश्रित था। खेतों की सिंचाई करना, पालतू पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करना सब कुछ उस नदी पर ही आश्रित था। नदी के उस पार एक दूसरा गांव था। लोग एक गांव से दूसरे तक अपनी वस्तुओं को पहुंचाते थे, जिससे दोनों गांव का भला हो रहा था। वह सभी गांव वाले सुख और शांति से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। नदी के इस पार वाले गांव में एक परिवार रहता था, जिसमें विमला नाम की एक लड़की रहती थी। उसके घर में विमला के माता पिता, दादा दादी और उसके भाई रहा करते थे। सभी लोग खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। विमला पहले छोटी थी। धीरे धीरे जब वह बड़ी होने लगी तो उसके माता पिता को उसकी शादी की चिंता होने लगी, क्योंकि विमला बड़ी हो रही थी। उसकी इच्छा भी पूरी हो गई थी। धीरे धीरे समय बीतता गया और विमला की शादी की उम्र आ गई। विमला के माता पिता ने विमला की शादी नदी के उस पार वाले गांव के एक लड़के से तय कर दी। लड़के का नाम धर्मेन्द्र था। अच्छी मुहूर्त निकालकर शादी की तारीख भी तय कर दी गई। शादी होने में बस कुछ ही महीने बचे थे। विमला की तबियत अचानक खराब होने लगी। वह न ज्यादा बोलती न कहीं जाती और खाना पीना तक भी उसने कम कर दिया था। वैद्य जी को बुलाया गया। उन्होंने जब उसकी नाड़ी की जांच की तो पता चला कि विमला को चार दिन से बुखार है। न उसे भूख लग रही थी और न ही प्यास लग रही थी। नींद भी उसे ठीक से नहीं आ रही थी। विमला अच्छी भली थी। सेहत भी उसकी ठीक थी। चार दिन में वह बिल्कुल सूख गई थी। रंग भी उसका काला पड़ गया था। कितने वैद्य आए, पर उसकी बीमारी का कारण नहीं ढूंढ पाए। माता पिता भी चिंता में परेशान थे। जैसा मैंने बताया कि अगले ही महीने विमला का विवाह होने वाला है। नदी पार के गांव के एक लड़के से विमला के माता पिता को यह भय था कि यदि ससुराल पक्ष में अगर इसकी बीमारी की सूचना पहुंच गई तो कहीं न कहीं वे लोग विवाह करने से इनकार कर देंगे।
विमला के माता पिता को यह डर सताने लगा कि कहीं गांव का कोई व्यक्ति अगर इसकी ससुराल वालों को इसकी बात बता देगा तो वे लोग शादी करने से मना कर देंगे। इस बात से उसके माता पिता काफी डरे हुए थे। कई वैद्य आए और चले गए पर उसकी बीमारी का कोई इलाज नहीं कर पाया। क्योंकि सब दवाइयां देते और जड़ी बूटियां देने के बाद सब चले जाते थे। जिससे कि कोई खास उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं आ रहा था। एक दिन गांव के सरपंच ने विमला के पिता से कहा क्यों नहीं तुम नदी के पास वाले आश्रम में जाओ। वहां एक बौद्ध महात्मा रहते हैं, उनके पास जाओ। सुना है वह लोगों की बीमारियों को अपने विचारों से सही कर देते हैं। उनके शब्दों में इतनी ताकत है कि एक बार अगर कोई उनके शब्दों को सुन लिया तो वह उनसे प्रभावित हो जाता है, जिससे बहुत ही शांति मिलती है। सुबह सुबह ही उसके पिता उस आश्रम में जाते हैं और उन बौद्ध महात्मा को प्रणाम करके उनसे कहते हैं हे महात्मा! हमारी बेटी बीमार हो गई है। कई वैद्य लोग आए पर उसे कोई ठीक नहीं कर पाया। वह दिन प्रतिदिन बीमार होती जा रही है और उसका शरीर सूखता जा रहा है। वह बहुत कमजोर हो गई है। उसका चेहरा भी काला पड़ गया है। अगले महीने उसकी शादी होने वाली है। हम सबको डर है कि कहीं उसकी शादी टूट न जाए, क्योंकि आजकल चुगली करने वाले लोग बहुत हैं। अगर उसके ससुराल वालों को यह पता चल गया कि विमला बीमार है तो मेरी इस बच्ची से वह अपने लड़के की शादी नहीं करेंगे, जिससे समाज में मेरी बदनामी हो जाएगी। महात्मा कृपया करके मेरी बेटी को ठीक कर दीजिए आप जो भी कहेंगे, हम उसके लिए तैयार हैं। बस आप मेरी बेटी को ठीक कर दीजिए। महात्मा अपने आश्रम में जाते हैं और आश्रम से कुछ जड़ी बूटियां लाते हैं और विमला के पिता से कहते हैं, जब तक मैं आ न जाऊं तब तक तुम विमला को यह जड़ी बूटियां पीसकर उसे देते रहना। मैं कल सुबह कुछ और जड़ी बूटियां लेकर तुम्हारे घर आता हूं। तुम सब परेशान। बिल्कुल भी मत होना। तुम्हारी बेटी बिल्कुल सही हो जाएगी। विमला के पिता घर आकर उन बौद्ध महात्मा के द्वारा दी हुई जड़ी बूटी को विमला को पीसकर पिला देते हैं। विमला ने जैसे तैसे वह दवा पी ली, क्योंकि दवा बहुत कड़वी थी। उसका शरीर बिल्कुल गल चुका था। अच्छी भली दिखने वाली विमला बिल्कुल सूख गई थी। अब उसमें जान नहीं बची। किसी तरह से वह बिस्तर से उठती और फिर लेट जाती थी। अगली सुबह वह बौद्ध महात्मा को जड़ी बूटियां लेकर विमला के घर पहुंच जाते हैं। विमला की माता महात्मा के पैरों को पकड़कर रोने लगी। महात्मा ने सांत्वना दी। कहा, चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा। महात्मा ने कहा, मुझे यह बताओ कि जिस दिन से बीमार हुई है, उस दिन क्या हुआ था? विमला की माता ने बताया उस दिन शाम को अपनी सहेली सरला के साथ खंडहर के पास जो भीड़ है वहीं पर खेल रही थी। दोस्तो, यहां पर भीड़ का मतलब होता है मिट्टी का बना हुआ एक टीला। उसकी माता ने कहा कि जब यह वहां से खेलकर लौटी तब इसका
चेहरा उतरा हुआ था। तभी से यह बीमार पड़ गई है। महात्मा ने विमला की माता से कहा कि पहले सरला को बुलाओ, सरला को बुलाया जाता है। महात्मा ने सरला से पूछा कि मुझे यह बताओ। उस दिन जब तुम दोनों उस भीड़ के पास खेल रही थी तो क्या हुआ था। सरला थोड़ी सोच विचार करके बोली जब हम खेल रहे थे तब सामने नदी के उस पार बहुत से ऊंटों का काफिला जा रहा था। उन सब पर बहुत सी रुई लदी हुई थी। विमला ने हमसे पूछा कि ये इतनी रुई कहां जा रही है? मैंने मजाक में कह दिया कि तेरी ससुराल जा रही है। इसने पूछा कि वे लोग इतनी रुई का क्या करेंगे तो मैंने कह दिया कि जब तेरी शादी उस घर में हो जाएगी तो तेरे ससुराल वाले तुझसे वही धागा कटवाएंगे। सरला ने महात्मा से कहा कि हे महात्मा मैंने बस इतना ही कहा था। महात्मा कहते हैं कि ओह तो यह बात है। महात्मा ने सरला के कानों में कुछ कहा और विमला के पिता को बुलाया। महात्मा विमला के पिता को लेकर नदी के उस पार जाते हैं और वहां पर विमला के पिता से पत्तों का ढेर लगाने को कहते हैं। पत्तों का ढेर लगाया जाता है। महात्मा विमला के पिता से कहते हैं कि अभी थोड़ी देर में तुम इन पत्तों में आग लगा देना महात्मा के कहे हुए अनुसार विमला के पिता ने पत्तों की ढेर में आग लगा दी, जिससे वहां पर धुआं चारों तरफ फैल गया। आसमान में सिर्फ धुआं ही दिखाई दे रहा था। तब सरला विमला से बोलती है कि विमला देख तेरे ससुर के रुई के गोदाम में आग लग गई है। सारी रुई जलकर राख हो गई है। विमला ने खिड़की से बाहर झांका और धुआं देखा तो उसने लंबी सांस ली। वह बहुत खुश हो गई कि अब उसके ससुराल में उसे धागे की कताई बुनाई का काम नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि उसने महसूस कर लिया कि उसके ससुराल में उसे धागे की कताई बुनाई का काम नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब वहां पर आग लग गई है। अब वह परेशान नहीं होगी। और शाम होते होते वह काफी ठीक भी हो गई। बस कुछ कमजोरी बची हुई थी। फिर अगले दिन महात्मा कुछ जड़ी बूटियां लेकर सुबह के समय ही विमला के घर पहुंच जाते हैं। जैसे ही महात्मा विमला के घर पहुंचते हैं तो उसकी माता दौड़कर महात्मा को प्रणाम करके कहती हैं यह महात्मा आपने जो जड़ी बूटी दी थी, उससे अब सही हो गई है। अब मेरी बेटी ठीक है। उसकी माता ने कहा कि यह महात्मा आपका लाख लाख शुक्रिया। महात्मा विमला के माता विमला से कहते हैं कि एक विचार के कारण ही यह परेशान हो गई थी और एक विचार के कारण ही सही भी हो गई। विमला के माता पिता को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा क्या कह रहे हैं। महात्मा कहते हैं कि जब तुम्हारी बेटी सरला के साथ उस पीठ पर खेल रही थी तो सरला ने जब तुम्हारी बेटी से यह कहा कि देखो ऊंट पर लदकर रोहनियां तुम्हारे ससुराल जा रही है और ससुराल में तुम्हें धागे की कताई बुनाई का काम करना पड़ेगा। सरला ने तो मजाक में यह बात कही थी लेकिन विमला उसकी बातों को बहुत गहराई तक सोच गई। वह शादी होने से पहले ही महसूस कर ली कि अगर उसकी उस घर में शादी
हुई तो उसे कताई बुनाई का काम करना पड़ेगा। बस यही बात उसे बहुत परेशान कर गई। उसके दिमाग में यह बात बैठ गई, जिसकी वजह से उसके दिमाग में नकारात्मक ऊर्जा ने जन्म ले लिया। जब तक उसके दिमाग से यह विचार हटता नहीं कि मुझे वहां पर जाकर काम करना पड़ेगा, कताई बुनाई का काम करना पड़ेगा, तब तक यह ठीक नहीं होती। इसलिए में विमला के पिता को नदी के उस पार पत्तों का ढेर लगाने को कहा और उसमें आग लगाने को कहा। और सरला से हमने यही कहा था कि जब तुम्हें नदी के उस पार धुआं दिखाई पड़े तब तुम विमला से कहना कि देखो तुम्हारे ससुराल में जो गोदाम है उसमें आग लग गई है। अब तुम्हें वहां पर काम नहीं करना पड़ेगा। जब विमला उठकर नदी के उस पार देखती है कि सच में वहां पर आग लगी हुई है तो वह महसूस कर ली कि अब उसे ससुराल में धागे की कताई बुनाई का काम नहीं करना पड़ेगा। इस बात से वह बहुत खुश हो जाती है। उसने इतना मजबूती के साथ इस बात को महसूस किया कि उसके दिमाग में मौजूद नकारात्मक विचार अर्थात नकारात्मक ऊर्जा दूर हो गई। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि उसके दिमाग में उत्पन्न हुई सकारात्मक ऊर्जा उसके दिमाग में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर दी। महात्मा कहते हैं सभी बीमारियों की जड़ ही हमारे विचार होते हैं। हम जब किसी बात को बहुत गहराई के साथ सोचते हैं या हमारे साथ जो भी घटनाएं घटित हुई होती हैं, अगर हम उन घटना को बहुत ही नकारात्मक तरीके से सोचते हैं तो वे सभी विचार हमारे दिमाग में मौजूद हार्मोन्स को प्रभावित करते हैं जिसकी वजह से हम बीमार होने लगते हैं और यह बात किसी को नहीं पता होती है। वैद्य भी आपको दवाई देगा और कभी कभी तो वह दवाई भी काम नहीं करेगी। तो समझ जाना कि दिमाग में जो मौजूद नकारात्मक विचार हैं वह अभी भी मौजूद हैं। जितनी भी बीमारियां हमारे शरीर में उत्पन्न होती हैं, वह इन्हीं नकारात्मक विचारों की वजह से ही उत्पन्न होती हैं। महात्मा कहते हैं कि मान लो कोई ऐसी बात जो हमें हफ्तों भर, महीनों, बार और सालों से परेशान करती आ रही है और हम उन बातों को बहुत ही नकारात्मक तरीके से सोच रहे हैं तो जब भी हम खाली बैठते हैं तब वही नकारात्मक बातें हमारे दिमाग में चलती रहती हैं जिससे हमारे दिमाग में तमाम तरह के नकारात्मक विचार जन्म लेते रहते हैं और हम उस एक बात को, उस एक नकारात्मक विचार को हम दिन प्रतिदिन सोचते रहते हैं। तो ऐसे में आप बीमार होते चले जाएंगे और बीमारी भी ऐसी होगी कि कोई दवा भी नहीं काम करेगी। इंसान अपनी जिंदगी में तमाम तरह के नकारात्मक बातों को ही सोचता रहता है, जिनका कि वास्तव में इस दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता है। फिर भी इंसान उन नकारात्मक बातों को बार बार सोचता रहता है। भविष्य के बारे में सोचता रहता है कि कहीं मेरे साथ कुछ गलत न हो जाए।
तमाम तरह के विचारों को वह अपने दिमाग में सोचते सोचते जगह दे देता है और जब विचार उसके दिमाग में एक बार जगह बना लेते हैं तो वह जल्दी उसके दिमाग से हटते नहीं हैं। महात्मा कहते हैं कि अगर तुम सब अपने दिमाग को एक सकारात्मक ऊर्जाओं से भर दोगे तो तुम सबको जल्दी कोई बीमारी नहीं पकड़ेगी। हां, कभी कभार मौसम के हिसाब से सर्दी जुखाम हो सकता है। छोटी मोटी बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन वे सब दूर हो जाएंगे समय के साथ साथ। लेकिन तुम्हारी चिंता करने से जो बीमारियां उत्पन्न होने वाली हैं, वह सब जल्दी दूर नहीं होंगी। जितनी भी बड़ी बीमारियां इंसान के अंदर होती हैं, वह इन्हीं नकारात्मक विचारों की वजह। सही होती है। महात्मा आगे कहते हैं कि अगर तुम सब अपने दिमाग में हमेशा सकारात्मक बातें ही सोचते हो तो तुम्हारे दिमाग में सकारात्मक बातें ही जन्म लेंगी। अर्थात तुम सब सकारात्मक ऊर्जाओं से भरे रहोगे। जो व्यक्ति जितना ज्यादा सकारात्मक ऊर्जाओं से भरा रहता है, वह उतना ही ज्यादा स्वस्थ और तंदुरुस्त होता है। चिंता सिर्फ और सिर्फ बीमारियों को जन्म देती है। मान लो तुम सब किसी बात को लेकर परेशान हो और बार बार उस बात पर विचार कर रहे हो। चिंतित हो उस बात को लेकर तो तुम्हारे दिमाग में नकारात्मक ऊर्जाएं, नकारात्मक विचार जन्म लेने लगेंगे और धीरे धीरे तुम्हें बीमार करने लगेंगे। इसलिए चिंता करने से कुछ नहीं होने वाला है। अपने दिमाग में सकारात्मक ऊर्जाओं को भरो और जिस बात को लेकर तुम्हें चिंता आ रही है, उस पर काम करना शुरू करो। उसका हल ढूंढने की कोशिश करो। चिंता करने से कुछ नहीं होगा। उसका हल ढूंढ लोगे तो भविष्य में कुछ न कुछ तुम्हें उसका हल जरूर मिल जाएगा। महात्मा कहते हैं, आज से ही तुम अपने दिमाग में सकारात्मक ऊर्जाओं को भरने का प्रयास करो, ताकि तुम्हारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो और तुम सब हमेशा खुश और शांति का अनुभव करने लगोगे। महात्मा इतना कहकर बची हुई जड़ी बूटियां विमला की माता को दे कर कहते हैं, अभी एक सप्ताह तक तुम इस जड़ी बूटी को विमला को सुबह और शाम पिलाते रहना ताकि वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाए। वह महात्मा विमला के माता पिता की सारी चिंता दूर कर देते हैं। इतना कहकर वह महात्मा वापस अपने आश्रम में आ जाते हैं।
दोस्तो, आज के समय में इंसान तमाम तरह के नकारात्मक विचारों से ग्रसित हो गया है। वह हर पल चिंता में जी रहा है। वह अपनी जिंदगी को ठीक से जी ही नहीं पा रहा है। वह हर पल चिंता और डर में जी रहा है और अपने दिमाग में तमाम तरह के नकारात्मक विचारों को जन्म दे रहा है। दोस्तों इसकी वजह से ही आज बहुत भयानक बीमारियां जन्म ले रही हैं। इन्हीं नकारात्मक विचारों की वजह से ही शुगर की बीमारी, हृदय की बीमारी, ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, लीवर का खराब हो जाना, किडनी फेल हो जाना, कैंसर का हो जाना तमाम तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं। इन सबका एक ही वजह है कि आज का मानव प्रकृति से दूर होता जा रहा है और अपने दिमाग में नकारात्मक बातों को जन्म दे रहा है। आज का इंसान बड़े बड़े बंगलों में तो रह रहा है, पर वह अशांति और अकेलापन महसूस कर रहा है। वह हर पल चिंता में जी रहा है और चिंता में ही सो रहा है, जिससे उसके दिमाग में नकारात्मक बातें जन्म ले रही हैं। अपने आप को समय दीजिए। प्रकृति के साथ तालमेल मिलाकर चलिए। कुछ समय खुले में और बाग बगीचे में समय बिताएं। प्रकृति की जो सकारात्मक ऊर्जा होती है, वह आपके दिमाग में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है और आप अच्छा महसूस करने लगते हैं। दोस्तों मुझे उम्मीद है आज के वीडियो आप सब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रही होगी और आप सब ने बहुत कुछ सीखा भी होगा। ऐसे ही और अच्छे वीडियो पाने के लिए और हमसे जुड़ने के लिए इस चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलियेगा। मिलते हैं अगली वीडियो में कुछ नए विचारों के साथ। तब तक के लिए मैं आपसे इजाजत चाहता हूँ इस वीडियो में बने रहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।