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दिमाग : बेचैन मन शांत हो जायेगा ! Unlocking the Mind's Potential 𓅫

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दोस्तो, दुनिया में एक ऐसी चीज मौजूद है जिसे अमीर से अमीर आदमी भी नहीं खरीद सकता और गरीब से गरीब आदमी भी उसे खरीद सकता है। कोई कितना भी अमीर क्यों न हो, पर उस चीज को नहीं खरीद सकता। दोस्तो, वह है हमारे मन की शांति। या आप यह कह सकते हैं हमारा मन अपने मन को समझ पाना बहुत ही कठिन काम है। अगले पल हमारे दिमाग में क्या विचार आने वाले हैं, यह हम सबको पता भी नहीं होता है। विचार अच्छा आया तो हमें मानसिक शांति और सुख प्रदान करता है। विचार बुरा आया तो वह हमारे मन को अशांत कर देता है। अगर आपका मन आपकी इच्छाओं से चलने लगे यानी आपके मन के ऊपर आपका नियंत्रण रहे तो फिर आप मन में आने वाले तमाम प्रदूषित विचारों और दुख फैलाने वाले विचार, जो आपको सबसे ज्यादा परेशान करते हैं। इन सब विचारों से आप छुटकारा पा सकते हैं। अगर आपके मन के ऊपर आपका नियंत्रण हो जाए अर्थात आपका मन आपके हिसाब से चलने लगे तो फिर आप मुश्किलों से छुटकारा पा सकते हैं। तो आज की इस बौद्ध कहानी में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि मन हमारे हिसाब से चलें ना कि हम मन के हिसाब से चलें। और कुछ तरीके बताए जाएंगे। जिसे जानने के बाद आपका मन भी आपके हिसाब से चलने लगेगा। यह बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध बालिका पर्वत पर रह रहे थे। तभी वहां पर महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास आया और वह महात्मा बुद्ध को प्रणाम करके कहता है है बुद्ध! मैंने सभी प्रकार से अपने मन को अपने नियंत्रण में कर लिया है, उसे अपने वश में कर लिया है। अब मेरा मन मुझे भटका नहीं सकता। अब मुझे मन की ओर से कोई भी अनुभूति नहीं होती और ना ही अब मैं अपने मन के आधीन रह रहा हूं। मेरा मन पूरी तरह से मेरे नियंत्रण में है। जैसा मैं चाहता हूं, जैसा मैं सोचना चाहता हूं। जिस तरह से मैं कार्य करना चाहता हूं, मेरा मन उसमें पूरा साथ देता है। मैं सब कुछ त्याग कर दिया हूं। मैं सब कुछ छोड़ दिया हूं और मैं परम सत्य को पाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हूं। बुद्ध बताइए, मैं परमसत्य को कैसे प्राप्त कर सकता हूं? मुझे कहां मिलेगा? महात्मा बुद्ध अपने उसी शिष्य की यह बात सुनकर मुस्कुराने लगे और सीसे से कहते हैं तुमने किस चीज का क्या किया है? तभी वह महात्मा बुद्ध से कहता है बुद्ध, मैंने अपना परिवार छोड़ दिया है, जहां मेरे माता पिता, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे रहते थे। मैंने उस परिवार को छोड़ दिया। जब मैं यहां पर आया था तो मुझे मेरे परिवार की बहुत याद आती थी। मेरा मन कहता था कि मैं वापस उन्हीं के पास चला जाऊं। मेरा मन यहां पर नहीं लगता था लेकिन देखते ही देखते मैंने अपने मन को अपने वश में कर लिया है। अब तो मैं इसको अपने नियंत्रण में कर लिया हूं। अब ना तो मुझे अपने परिवार की याद आती है और ना ही मैं उनकी यादों को लेकर बेचैन रहता हूं। और तो और मुझे अपने घर के उन स्वादिष्ट पकवानों की भी याद नहीं आती जो मैं अपने सांसारिक जीवन में खाया करता था और अब तो जो कुछ भी मुझे मिल जाए मैं वही भोजन कर लेता हूं और उसी में मुझे आनंद मिलता है। मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूं। पहले मेरी काम बोर में इच्छा आ जाती थी लेकिन अब मेरी इच्छा इस तरफ बिल्कुल भी नहीं आती। मेरे अंदर अब किसी भी प्रकार का कोई लालच नहीं है, कोई द्वेष नहीं है और न ही किसी से ईर्ष्या। मेरा मन बहुत ही शांत और स्थिर है और न ही मेरे मन में कोई इच्छा है और न ही कुछ पाने की लालसा है। अब मेरे मन में केवल मैं ही हूं। महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनते हैं और उसके बाद अपने शिष्य से कहते हैं भंते, ठीक है, जो कुछ भी तुम कर रहे हो, वह सब सही है। इसलिए तुम कल मेरे साथ भिक्षाटन के लिए मेरे साथ चलोगे। वैसे महात्मा बुद्ध के मुख से यह शब्द सुनकर बहुत ही प्रसन्न हो जाता है और उनसे कहता है जैसा आप चाहें। अगले दिन सुबह महात्मा बुद्ध और शिष्य दोनों भिक्षाटन के लिए आश्रम से निकल पड़ते हैं। जब महात्मा बुद्ध और उनका से बिछड़ के लिए एक गांव की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में एक बहुत ही मनोरम उद्यान पड़ा। वहां पर बहुत ही असीम शांति थी। चारों तरफ हरियाली थी, मध्यम हवाएं बह रही थी। हर तरफ मानो खुशियां बिखेर दी गई हो। यह सब देख कर वासी मंत्रमुग्ध हो गया और वह मन ही मन सोचने लगा यदि मैं यहां पर आकर ध्यान करूंगा तो मैं परमसत्य तक अवश्य ही पहुंच जाऊंगा। परम सत्य मुझे जल्द ही मिल जाएगा। और अब यही विचार उसके मन में बार बार आने लगा। वह बार बार उसी उद्यान के बारे में सोचता। वहां की शांति, वहां की हरियाली, उन हवाओं के बारे में, उस उद्यान के फूलों की खुशबू के बारे में जो वहां की हवाओं में बह रही थी। उसके मन में वहां जाने की तीव्र इच्छा उत्पन्न होने लगी। लेकिन उसने जैसे तैसे खुद को संभाला और महात्मा बुद्ध के साथ दूसरे गांव में जाकर भिक्षा मांगकर वापस आश्रम लौट आया। लेकिन अभी उसके मन में उस उद्यान में जाने की तीव्र इच्छा जाग उठी थी और उसकी यह इच्छा समय के साथ और भी अधिक प्रबल हो। जा रही थी, उससे अब रहा नहीं जा रहा था। वह कैसे भी उस मनोरम उद्यान में जाना चाहता था। अब उससे रहा नहीं जा रहा था। वह तुरंत ही महात्मा बुद्ध के पास जाकर उन्हें सादर प्रणाम करके कहता है बुद्ध वह उद्यान बहुत ही सुन्दर था और वहां पर जो शांति थी, जो हरियाली थी और वहां की हवाओं में खुशबू बह रही थी, उससे मेरा मन और भी शांत हो गया था। यदि मैं वहां पर जाकर ध्यान करता हूं तो मेरा ध्यान अवश्य ही सफल होगा और मैं बहुत ही जल्द सत्य की प्राप्ति कर पाऊंगा। मैं बहुत जल्द बुद्धत्व को प्राप्त कर सकूंगा। उस समय महात्मा बुद्ध और उनके शिष्य के अलावा उस आश्रम में कोई और नहीं था। महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा ठीक है, तुम चले जाना, लेकिन अभी कुछ देर के बाद जाना। जब कोई दूसरा भिक्षु यहां पर आ जाए तो तुम यहां से जा सकते हो। तब तक के लिए यहीं पर रुको। जैसे ही कोई भिक्षु आएगा तो तुम यहां से चले जाना। लेकिन उसका मन पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो चुका था। उससे सबके मन में उस उद्यान में जाकर बैठने की लालसा जाग उठी थी। वह अपनी इस इच्छा को पूरी करना चाहता था और इसी तीव्र इच्छा के कारण उसका मन यह मानने के लिए तैयार नहीं था और वह किसी के आने का इंतजार नहीं करना चाहता था। उसका मन वहां जाने के लिए बेचैन हो रहा था और वह अपने आप को रोक भी नहीं पा रहा था। इसलिए उसने महात्मा बुद्ध से एक बार फिर प्रार्थना की और कहा, हे बुद्ध! मुझे वहां जाने की आज्ञा दें। तभी महात्मा बुद्ध ने उसे एक बार फिर समझाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, मैंने तुम्हें पहले ही कहा है। कुछ देर प्रतीक्षा कर लो। जैसे ही कोई भिक्षु आयेगा तो तुम यहां से चले जाना। लेकिन इससे उसका मन तो उद्यान में जाने के लिए मचल रहा था। वहां जाने की इच्छा उसको और ज्यादा बेचैन कर रही थी। किसी भी हालत में वह अपनी उस ब्रेड इच्छा की पूर्ति करना चाहता था। इसलिए वह बार बार महात्मा बुद्ध से केवल एक ही निवेदन कर रहा था कि बुद्ध उसे उस उद्यान में तो आज मैं ध्यान क्यों नहीं कर पा रहा हूं? उसे अपने इस प्रश्न का उत्तर चाहिए था, जिस कारण वह शाम को वापस महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा। महात्मा बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और उन्हें प्रणाम करके महात्मा बुद्ध से कहता है हे बुद्ध! आज बहुत अजीब बात हुई जो मेरा मन पूरी तरह से मेरे नियंत्रण में था, जिस पर मैंने अपना नियंत्रण पा लिया था। आज वही मन मुझे भटका रहा था। मैंने कई बार ध्यान करने की कोशिश की, कई बार अपने मन को केंद्रित करने की कोशिश की, लेकिन मेरा मन मेरे काबू में आ ही नहीं रहा था। वह मुझे यहां वहां की बातें दिखा रहा था। मुझे पुरानी यादें दिखा रहा था। वह मुझे भटकाने में लगा हुआ था। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने सुबह से लेकर शाम तक इसे अपने वश में करने का पूरा प्रयास किया, लेकिन फिर भी मैं इस पर काबू नहीं कर पाया। जबकि मैं वहां ध्यान भी किया था। लेकिन फिर भी ऐसा क्यों हुआ? तभी महात्मा बुद्ध अपने शिष्य को समझाते हुए कहते हैं भंते! अगर कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, चोरी करता है, पाप करता है और अगर उस व्यक्ति की आंखों पर पट्टी बांध दी जाए, उसके हाथ पैर बांधकर उसे कारागृह में डाल दिया जाए, तब क्या ऐसा व्यक्ति सत्यवान और ईमानदार हो सकेगा? क्या वह झूठ बोलना बंद कर देगा? क्या वह दानी बन जाएगा? इस पर शिष्य कहता है, ऐसा कैसे हो सकता है? यदि व्यक्ति झूठ बोलता है, वह पापी है, चोरी करता है, लोगों को धोखा देने में उसे मजा आता है और यदि उसके हाथ पैर बांधकर उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर उसे किसी कारागृह में डाल दिया जाए तो वह और भी कठोर हो जाएगा। और जब वह वहां से बाहर निकलेगा तो और लोगों को परेशान करेगा। ऐसा व्यक्ति भला कैसे ईमानदार और सच्चा हो सकता है और ऐसा व्यक्ति कभी कोई दान नहीं कर सकता। वह जो पहले था, वही रहेगा। तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराने लगे और अपने उसी शिष्य से एक बार फिर कहते हैं, मान लो अगर कारागार का द्वार खुला हो और पहरेदार सोया हुआ हो तो क्या ऐसा व्यक्ति कारागार से भागने का प्रयास नहीं करेगा? इस पर वह से कहता है, हां बिल्कुल। वह कारागार से भागी जाएगा, क्योंकि वह एक अपराधी है। वह ज्यादा दिनों तक बंदी बनकर रहना कभी नहीं पसंद करेगा। उसे अपनी आजादी पसंद है और उसे लोगों को परेशान करना भी पसंद है। इसलिए वह उस कारागृह में रह नहीं पाएगा। यदि उसे ऐसा अवसर प्राप्त होगा तो वह अवश्य ही वहां से भाग जाएगा। तभी महात्मा बुद्ध ने कहा, तो क्या वह कारागृह से भागने के बाद सत्यवान हो सकता है? क्या वह सत्य बोलेगा? क्या वह ईमानदारी की राह पर चल सकता है? क्या वह दानी बन जाएगा? महात्मा बुद्ध के इस सवाल का जवाब देते हुए वह शिष्य कहता है, वह भला ऐसा कैसे हो सकता है? वह तो अपराधी है, गुनाहगार है, जिसे लोगों को परेशान करने में मजा आता है। जिसे चोरी करना अच्छा लगता है। वह भला सत्यवान कैसे हो सकता है? वह भला ईमानदारी की राह पर कैसे चल सकता है? वह तो असत्य ही बोलेगा व लोगों को तंग ही करेगा। लोगों को परेशान करेगा, क्योंकि उसे उसी में आनंद आता है। जब तक उसमें कोई परिवर्तन न हो, तब तक वह उसी गलत राह पर चलता रहेगा। तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराने लगे और अपने उसी शिष्य से कहते हैं भंते! जिस तरह से अपराधी कारागृह से भाग जाएगा। वैसे ही तुम्हारा मन भी कारागार से भाग चुका है। भला कारागृह में कौन रहना चाहता है? जब जिसे मौका मिलता है, कारागृह से भाग जाता है। दुनिया की हर एक जगह अच्छी होती है। बस बदलाव खुद में लाना होता है। तुम्हारा ध्यान यहां पर भी लग सकता था। और जैसा पहले था। तुम्हारा ध्यान लग भी रहा था। बस तुम्हें खुद को जागरूक करने की जरूरत थी कि जो वहां प्रगित थी, वही यहां पर भी है। जो लोग पूजा पाठ करते हैं, जरूरी नहीं कि मंदिर ही जाएं तो ही उनका मन शांत हो। मन अगर शांत है तो घर भी मंदिर बन जाता है। बुद्ध कहते हैं, मन की शांति खोजना है तो खुद के अंदर जाने का प्रयास करो। बाहर के वातावरण में मन की शांति नहीं मिलेगी। मन भटकता रहेगा। तुम उसके पीछे भागते रहोगे। मन की शांति के लिए अच्छी जगह पर भागते रहोगे। पर कहीं भी तुम्हें शांति नहीं मिलेगी या मन तुम्हें भटकाता रहेगा। तुम उसके पीछे भागते रहोगे, पर तुम्हें कभी भी शांति नहीं मिल पाएगी। इसलिए शांति लानी है तो खुद के भीतर जाने का प्रयास करो। इसके लिए खुद के भीतर की यात्रा करो। इंसान दिनभर भागता रहता है यहां वहां सिर्फ सुख पाने के लिए। अगर उसे थोड़ा सुख भी मिल जाता है तो वह और अधिक सुख पाने की इच्छा में भागने लगता है। जब उसे और अधिक सुख मिलता है तो वह उससे ज्यादा सुख पाने की राह पर निकल पड़ता है। ऐसे ही इंसान सुख पर सुख खोजता रहता है, पर उसे कहीं भी असली सुख और शांति नहीं मिल पाती है। इसलिए ध्यान में बैठने का प्रयास करो। असली शांति तो है तुम्हारे अंदर। जब तुम ध्यान में प्रतिदिन बैठने लगोगे तो धीरे धीरे तुम्हारा विचलित मन भटकता हुआ मन स्थिर होने लगेगा। फिर मन की चंचलता दूर होती जाएगी और तुम्हारा मन तुम्हारे हिसाब से काम करेगा। जो तुम चाहोगे वही करेगा। महात्मा बुद्ध की यह बा सुनकर वह शिष्य तुरंत ही महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और हाथ जोड़कर उनसे कहने लगा बुद्ध, मुझे क्षमा करें। बुद्ध मुझे क्षमा करें। वास्तविकता में मैं तो वहां पर ध्यान करने ही गया था, लेकिन वाटिका ऐसी थी कि किसी की याद दिला रही थी और मैं अपनी पुरानी यादों को दोबारा जीना चाहता था। इसी कारण मेरा मन अत्यधिक विचलित हो चुका था। मेरे मन में तीव्र इच्छा उत्पन्न होने लगी थी कि मुझे उस वाटिका में जाना चाहिए और अपनी उन यादों को एक बार फिर से जिंदा करना चाहिए। इसी कारण से मैं वहां पर ध्यान भी नहीं लगा पाया। मैंने बहुत प्रयास किए, बहुत प्रयत्न की, लेकिन एक बार भी ध्यान में उतर नहीं पाया। इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा, भंते! मन को वश में करना नहीं होता है, न ही मन पर नियंत्रण पाना होता है, बल्कि इसे तो परिवर्तित करना होता है। हमारा मन बहुत चंचल होता है। जिस प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी मछली को पानी से निकालकर जमीन पर पटक देता है तो वह तड़पने लगती है। दोबारा पानी में जाने के लिए ठीक उसी प्रकार व्यक्ति का मन होता है। वह भागता रहता है। वही भागता रहता है जहां उसे आराम मिल। है। तड़पता रहता है उसी जगह भागने के लिए और जब तक तुम अपने मन को सीधा और सरल नहीं कर लेते, तुम्हारा मन हमेशा कारागृह से भागता ही रहेगा। इसलिए अपने मन पर यदि तुम में नियंत्रण पाना चाहते हो, अपने मन को अपने वश में करना चाहते हो, तो इसे सीधा और सरल बनाओ। अपने अंदर की यात्रा करो। ध्यान में बैठने का प्रयास करो और उसके लिए तुम खुद को पहले जागरूक करो ताकि तुम्हारा मन सीधा और सरल हो सके और ध्यान में तुम्हें कोई और विचार भटकाना सके और यह प्रयास तुम्हें निरंतर करते रहना होगा जब तक कि तुम्हारा मन सीधा और सरल न सोचने लगे अर्थात तुम्हारा मन शांत न होने लगे, तुम्हारे दिमाग में कोई और विचार न आए। तब तुम ध्यान की गहरी अवस्था में जा सकते हो। जब तुम अपने मन पर नियंत्रण पाना चाहते हो। इस विचार के साथ अगर तुम ध्यान करोगे तो तुम कभी भी ध्यान नहीं कर पाओगे, क्योंकि तुम अपने मन को बार बार अपने वश में करना चाहते हो और जब तुम अपने मन को बार बार वश में करने लगोगे तो तुम्हारा ध्यान मन पर चला जाएगा न कि ध्यान पर।तो ऐसी अवस्था में तुम कभी भी ध्यान में नहीं जा पाओगे और जब तुम ध्यान की गहरी अवस्था में पहुंच जाओगे, तब तुम्हारा मन भी तुम्हारे नियंत्रण में आ जायेगा। वह तुम्हारी हर बात मानेगा। जैसा तुम चाहोगे, वह तुम्हारा साथ देगा और वह भी एक अच्छा साथी बन कर। यह तुम्हारी हर इच्छा में तुम्हारा साथी रहेगा और फिर तुम जैसा चाहो, जिस लक्ष्य को पाना चाहोगे, उस लक्ष्य को पाने के लिए तुम्हारे लिए रास्ता भी तैयार करेगा और तुम अपने उस लक्ष्य को बड़ी आसानी और बड़ी सरलता से प्राप्त कर सकोगे। इतना कहकर महात्मा बुद्ध शांत हो गए और वह कहता है हे बुद्ध ! आपने मेरी आंखे खोल दी। मैं तो अपने मन को अपने वश में करने चला था लेकिन मैं यह भूल चुका था कि इसे वश में न करके इसे परिवर्तित करना होगा। बुरे विचारों की जगह हमें इसमें अच्छे विचार भरने होंगे। बुरी आदतों की जगह हमें इसमें अच्छी आदतें लानी होगी।

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